730226 - Lecture BG 02.12 Hindi - Jakarta
A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada
Prabhupāda:
- na tv evāhaṁ jātu nāsaṁ
- na tvaṁ neme janādhipāḥ
- na caiva na bhaviṣyāmaḥ
- sarve vayam ataḥ param
- (BG 2.12)
HINDI TRANSCRIPT
“न त्वे एवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपः न चैव न भविष्यामः सर्वे वयम अत: परम्”
भगवान, श्री कृष्ण, अर्जुन को समझा जा रहा है कि न त्वे एवाहं, मैं भगवान, न जातु नासं। ऐसा नहीं कि पहले मैं नहीं था, न त्वं, ऐसे आप भी, अर्जन, आप भी पहले थे, मैं भी पहले था। नेमे जनाधिपः। और ऐसी बात नहीं है कि जितने राजा और सुपाही, जो युद्ध में सब आए हैं, ये भी नहीं हैं। मेरे कहने का मतलब है, कि मैं, भगवान, और आप, और इतने-इतने राजा, और सुपाही, सब इधर आये हैं, सब पहले हमलोग जैसे थे, अभी ऐसे ही हैं। ऐसे नहीं शुन्य, जीरो, (यह काम नहीं कर रहा है। कभी यह काम करता है, कभी यह काम नहीं करता है) न चैव न भविष्यामः सर्वे वयम अत: परम्। अब ये भी बात नहीं है की आगे जाके भविष्य में आप भी नहीं रहेंगे हम भी नहीं रहेंगे, और ये भी राजा लोग जो इधर आये हैं ये भी नहीं रहेंगे, सब शुन्य हो जायेंगे। ये जो मायावादी, शून्यवादी, शून्यवादी जो किस्मत से हैं, हम लोग सब शुन्य से पैदा हुए हैं। और आगे जाके ये सब शुन्य हो जायेंगे। अतएव जब तक ये शरीर है खूब मज़ा करो, ये शून्यवादी का विचार। पहले तो शून्य था, और किसी तरह से ये शरीर हमको मिल गया है, इंद्रिया, तो अच्छा तरह से इस को भोग लियो, भीख मांगो, उधार लो, चोरी करो, किसी तरह से पैसा ले आओ, और मजा करो। पहले शून्य था, आगे जाके शून्य हो जायेंगे। ये पाप-पुण्य का विचार क्या जरूरत है। ये सब मुर्ख लोग करेंगे, हम सब बहुत विद्वान हैं। बात ये नहीं है, भगवान कृष्ण स्वयं कहते हैं। मैं कह दूँ कोई बात तो आप उसको टाल सकते हैं, बाकी जब भगवान कहते हैं, उदर कहते हैं भगवान उवाच, स्वयं भगवान कहते हैं तो उसको आप कैसे टाल सकते हैं। वो मूर्खता है, आजकल भगवान बहुत होते हैं, भगवान का अर्थ वो समझना चाहिए, कौन भगवान, साथ में भगवान किसको कहा जाता है, उसको बताया, पराशर मुनि ने: “ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशसः श्रियः ज्ञान-वैराग्ययोश चैव संनाम इति भग गण” ये छे प्रकार का ऐश्वर्य, आपुलेन्स, सम्पूर्णतः किसके पास है, वो भगवान। वो भगवान कौन है, ऐश्वर्यस्य समग्रस्य, जैसे आप लोग, हम जितने लोग यहाँ बैठे है, किसी के पास लाख रूपया है, किसी के पास दस लाख रूपया है, किसी के पास करोड़ है, किसी का और ज्यादा है समझ लीजिये, कम भी है, कोई बोल नहीं सकता है की हमारे पास सब धन ह। ऐसे कोई व्यक्ति इधर मौजूद है। नहीं कोई नहीं है हमारे पास, हमरा कुछ कम है, आपका कुछ ज़्यादा है, और किसी का कम है, कम-ज़्यादा। एक तरह से कुछ नहीं है। कोई बोल नहीं सकता की हमारे पास जो धन है इससे बढ़कर किसी के पास नहीं। ये संभव नहीं है। बाकि भगवान कौन हो सकता है, जिसके पास इतना धन है, की और किसी के पास इतना धन नहीं है। वो भगवान है। भगवान को अगर समझना है तो यह छे चीज़ किसके पास पूर्णतहः है, सम्पूर्ण धन जिसके पास है और ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्। वीर्य का अर्थ होता है शक्ति, सर्व शक्ति। हमारा पास, आपके पास कुछ शक्तियां है। बाकि कोई नहीं कह सकता है की हमारा पास पूरा शक्ति है। तो भगवान को विचार करना चाहिए। यदि भगवान का आश्रय करना चाहते हैं तो ऐसे भगवान से जोड़िये जोकि संपूर्ण ऐश्वर्य का मालिक है, समपूर्ण वीर्य, बल का मालिक है, पूर्ण ज्ञान जिसके पास है, संपूर्ण श्री, ये सुंदरता जिसके पास है। तो ऐसे भगवान से जुड़ें, फालतू भगवान से जुड़ने का क्या लाभ है। हमलोग जो है ये फालतू भगवान से जुड़ते हैं। थोड़ा सा सोना बना लिया तो भगवान हो गया। हम तो देखेंगे की जितना सोना पूरा दुनिया में है उसका मालिक भगवान है। एक अंगूठी बना दिया भगवान हो गया। इतना सस्ता भगवान हो गया। जितना सोना का खान है। एक ये तो एक धरित्री है। ये तो एकमामूली है. एक धृति, एक ब्रह्माण्ड में अनंत कोटि धरित्रियाँ है। “यस्य प्रभा प्रभवतो जगत-अण्ड-कोटि- कोटिश्व अशेष-वसुधादि विभूति-भिन्नम् तद् ब्रह्म निष्कलम् अनंतम् अशेष-भूतम् गोविंदम आदि-पुरुषम तम अहम भजामि” हमलोग कोई गोविंग को ----- जोकि 'यस्य प्रभा प्रभवतो' जैसे उनके शरीर से एक प्रभा छूटती है। जैसे सुरज लोक से एक प्रभा छूटती है। और वो प्रभा के अंदर में, सुरज किरन के अंदर में अनंत कोटि आपकी धरित्री है। आप लोग देख रहे हैं, ये सुरज किरण के अंदर में एक पृथ्वी नहीं अनेक, अनंत कोटि सब घूम रहा है। ये साइंटिफिक है, वैज्ञानिक है। ये सूरज का तेज में, वो गर्मी में सब घूमता है। और जगह में बताया गया है सुरज का विषय में “यच-चक्षुर एषा सविता सकल-ग्रहाणां राजा समस्त-सूर-मूर्तिर अशेष-तेजः यस्याज्ञय भ्रमति संभृत-काल-चक्रो गोविंदम आदि-पुरुषम तम अहम भजामि” ये जो सुरज जो है, ये सब ग्रह नक्षत्र के आँख का स्वरुप है। बिना सूरज के किरण, आप लोग कोई भी देख नहीं सकते हैं। और खाली ये पृथिवी में नहीं, अनंत कोटि जो धरित्री हैं, तो आकाश में झूल रहा है, फांस रहा है। ये सब में जब तक सूर्य का किरण नहीं होता है, हमारा आँख रहते हुए भी हम नहीं देख सकते हैं। हमलोग आँख का बड़ा गर्व करते हैं। हमारे पास आँख है लेकिन हम नहीं देख सकते हैं। भगवान को दिखा नहीं सकते तो आँख का क्या कीमत है। अभी बत्त्ती बुझ जाये तो आँख का कीमत हट जाये, सब ख़तम। तो आँख का कीमत, भगवान को देखने के लिए ये आँख से काम नहीं चलेगा। वो और आँख चाहिए।, वो आँख क्या चीज़ है;
“प्रेमाञ्जन-चुरितः-भक्ति-विलोचनेन सन्तः सदैव हृदयेषु विलोकयन्ति यम श्यामसुन्दरम् अचिन्त्य-गुण-स्वरूपम् गोविंदम आदि-पुरुषम तम अहम भजामि”
जो प्रेमाञ्जन-चुरितः, यही आख में, जो आख में अभी भगवान को मैं नहीं देख सकता, यही आख में भगवान को हमको देखने को मिलेगा, कब मिलेगा? जब, प्रेमाञ्जन-चुरितः-भक्ति-विलोचनेन, ये आँख में जैसा हमलोग अंजन लगाते हैं, इसी प्रकार भागवत प्रेम रूप अंजन जब लगाएंगे, तब जाके यही आँख से हमको भगवान को देखने को मिलेगा। तो भगवान को देखने में कोई मुश्किल नहीं है। खाली आँख होना चाहिए और कुछ नहीं। आँख को बनाना चाहिए।
“स्थावर-जंगम देखे, ना देखे तारा मूर्ति सर्वत्र हय निज इष्ट-देव-स्फूर्ति”
जब आप आँख बना लें, “प्रेमाञ्जन-चुरितः-भक्ति-विलोचनेन”, भक्ति द्वारा जब हम प्रेम से ये अंजन को साफ़ कर लेंगे, तो भगवान का हमारा दर्शन होगा। दुनिया में आप जो कुछ देख रहे हैं, वो सब नहीं देखेंगे। सब जगह में भगवान ही दिखाई देंगे। सब जगह। जैसे कोई पेड़ है सामने, वो भक्त पेड़ नहीं देखता, वो देखता है हमारा भगवान इधर बैठा है। “प्रेमाञ्जन-चुरितः-भक्ति-विलोचनेन सन्तः” जब एक फूल देखेगा, वो फूल में भगवान देखेगा। कोई भी चीज देखेगा, क्योंकि उनका स्मरण होता है ना। जैसे आपका कोई बच्चा है, उसमे आपको बड़ा प्रेम है, तो उनका जूता भी देख लेते हैं तो उनके लिए रोते हैं। ये हमारा बच्चा है, अभी घर में नहीं है, ये उसका जूता है, तो आप जूता नहीं देखते बच्चे को देखते हैं। क्योंकि प्रेम, है की नहीं। होता है की नहीं। तो इसी प्रकार जब भागवत प्रेम हो जायेगा सब चीज़ में आप भगवान देखेंगे। ये भगवान को देखने के लिए रस्ते है। ये नहीं है की मैजिक दिखाके भगवान देखेगा।
“प्रेमाञ्जन-चुरितः-भक्ति-विलोचनेन सन्तः सदैव हृदयेषु विलोकयन्ति”
जो संत होते हैं उनको वास्तविक भगवान को देखने के लिए योग्य है, वो तो सब में भगवान को देखेंगे। ये नहीं अभी भगवान देखा और अभी नहीं, सब समय, प्रेमाञ्जन, जो योगी लोग होते हैं वो भी भगवान को देखते हैं।
“ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो यस्यान्तं न विदुः सुरसुरगण देवाय तस्मै नमः॥ ॥” “यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत्: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै- र्वेदै: सङ्गपदक्रमोपनिषदैरगायन्ति यं समागा:। ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो यस्यान्तं न विदुः सुरसुरगण देवाय तस्मै नमः॥ ॥”
ये भगवान दर्शन करने के लिए हैं, ये सब पद्दति है। भगवान हैं, इसी के लिए भगवान कहते हैं जो ऐसी बात नहीं है की मैं पहले नहीं था। ये मूर्ख लोग कहते हैं, जो भगवान निराकार हैं, अभी एक शरीर धारण करके हमारे सामने आए। तो भगवान ये नहीं कहते हैं, भगवान तो नहीं कहते हैं, भगवान कहते हैं ऐसी बात नहीं है, जो मैं पहले नहीं था। भगवान पहले नहीं था, ये मूर्ख लोगों का प्रवचन है, जो भगवान पहले नहीं था, अभी भगवान एक रूप धारण करके जैसे मैं चाहता हूं, ऐसे रूप धारण करके आए। दार्शनिक विचार है ये मूर्खता है। भगवान नहीं कहे। तो भगवान का विषय समझने के लिए भगवान से ही पता चलेगा। आप कोई सोचे-साझ करके भगवान खड़ा कर लेंगे, वो भगवान नहीं है। भगवान इतना सस्ता चीज़ नहीं है। भगवान, जैसा कोई बड़ा आदमी है, समझे आप कही नोकरी करते हैं, आपका मालिक जो है, बहुत भारी आदमी है। तो आप सोचते रहेंगे ये जो हमारा मालिक है, उनके पास इतने रुपए जरूर होगा, एक करोड़ तो जरूर होगा, कोई बोलता है नहीं जी दस करोड़ होगा, कोई बोलता है नहीं बीस करोड़ होगा। ऐसा सोचते जाइये तो इसमें ठीक पता नहीं चलेगा की वास्तविक मालिक के पास कितना पैसा है। वो मालिक को अगर संतुष्ट करके आप अगर उसको पूछें की हज़ूर हमलोग ऐसे सोचते हैं वास्तविक आपके पास कितना रूपया है ये हमलोग जानने को चाहते हैं। वो अगर बोल देता है की देखो जी, हमारे पास तीस करोड़ रूपया है तो हो गया, बात ख़तम। आपके सोचने से जीवन भर सोचते रहेंगे। आपको पता नहीं कुछ चलेगा। बाकि अगर मालिक एक दफा कह देता है की देखो जी हमारे पास इतना रूपया है तो हो गया काम ख़तम। इसलिए शास्त्र में बताते है,
“अथापि ते देव पदाम्बुजद्वय- प्रसादलेशानुगृहीत हि एव । जानाति तत्त्वं भगवन महिमनो न चान्य एकोऽपि चिरं विचिन्वन् ॥ 29 ॥”
भागवत तत्त्व क्या चीज़ है वो यदि हम जन्म-जन्मांतर सोचते हैं, तो वो सोचने से भगवान पता नहीं चलता है।
‘अथापि ते देव पदाम्बुजद्वय- प्रसादलेशानुगृहीत हि एव।’
बाकि भगवान का जो कृपा प्राप्त किया, जैसे वोही उदहारण; एक बड़ा आदमी है, मैं तो जन्म भर सोचते हैं उसका क्या कीमत, कितना रूपया हमको पता नहीं चलता है। बाकि उनका जो पर्सनल सर्वेंट है वो जनता है, वो अगर कह दे देखो जी मालिक के पास इतना रूपया है तो फिर पता चल जाता है। ये भगवान कह देता है तो और भी पक्का। ये भगवान कह देता है और भी निश्चित। इसी प्रकार भगवान को पता चलेगा भगवान के भक्त का जरिया से ये तो भगवान है, और नहीं तो भगवान का पता नहीं चलेगा। भगवान को भक्त का जरिया से भगवान का पता चलेगा। भगवान को सस्ता न बना लीजिये। भगवान, भगवान का परिचय शास्त्र से देखिये जैसे भगवान कृष्ण कहते हैं
"मत्तः परतरं नान्यत्
किंचिद अस्ति धनंजय"
"अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते इति मत्वा भजन्ते मम बुद्ध भव-समन्वितः"
भगवान वेदांत सूत्र में बताते हैं की भगवान कौन है? अथातो ब्रह्म जिज्ञासा, भगवान के विषय में पूछताछ करना, ये मनुष्य जीवन का काम। ये जो हम लोग बजार में जाते हैं, ये क्या भाव है, ये सब पूछते हैं, ये नहीं, ऐसे पूछना नहीं। भगवान क्या चीज है, ये पूछना जो है, ये ही मनुष्य जीवन का काम है। और इसका क्या भाव है, ये क्या भाव है, ये क्या चीज है, ये क्या चीज है, ये नहीं। "आहार, निद्रा, भ। मैथुनम", ये तो तुम खाने,पीन ,सोने, के लिए व्यावहारिक शरीर पालन करने के लिए ये सब करने पड़ते हैं, बाकि असल जो काम हमारा पास है, वो भगवान के विषय पूछना जो कि कुत्ता, भेड़ी नहीं कर सकते। कुत्ता, भेड़ी से ये प्रश्न नहीं हो सकते, जो भगवान क्या चीज है। कुत्ता, भेड़ी का ये प्रसन्न होता है, किधर खाएंगे, क्या सोएंगे, कैसी स्त्री मिलेगा, कैसे अपने को बचाएंगे, ये कुत्ता, भेड़ी का प्रश्न है,
“आहार-निद्रा-भय-मैथुनं च सामान्यं एतत् पशुभिर नराणाम”
आहार, क्या खाएंगे, कैसे सोयेंगे, कैसे ग्रहस्ती का पालन करेंगे, कैसे बचाएंगे अपने को ये जो सब प्रश्न है, ये पशु का भी है। पशु भी ये सोचता है, किस तरह से खाएंगे, किधर सोएंगे, किस तरह औरत मिलेगा, हमें कौन बचाएगा। ये प्रश्न जो है, ये इंसान का भी है, और जानवर का भी है। बाकि और एक जो प्रश्न है, अथातो ब्रह्म जिज्ञासा; ये वेदांत सूत्र में है। वो मनुष्य के लिए है। कुत्ता, भेड़ी ये प्रश्न नहीं कर सकता है की भई भगवान क्या चीज है, हम लोग क्या हैं, भगवान से हमारा क्या सम्बन्ध है, हम लोग इदर क्यों आए हैं, किधर से आए हैं, किधर जाना है, ये सब प्रसन्न मनुष्य के लिए है। इसलिए शास्त्र में कहते हैं ‘अथातो ब्रह्म जिज्ञासा’। इसलिए और भी कहते हैं;
"पराभवस तावद अबोध-जातो यावन न जिज्ञासता आत्म-तत्त्वम्"
आत्म-तत्त्वम्, ये आत्मा-तत्त्वं है। ये भगवान क्या चीज़ है, मैं क्या चीज़ हूँ, भगवान से हमारा क्या सम्बन्ध है, क्यों हम दुःख नहीं चाहते हैं, क्यों हमारे ऊपर दुःख चढ़ाया जाता है, कौन चढ़ाता है। कैसा है कोई दुःख नहीं चाहता है। यह सनातन गोस्वामी पूछा थे चैतन्य महाप्रभु से; चैतन्य महाप्रभु के पास वो सब मिनिस्टर थे। सब छोड़-छाड़ केचैतन्य महाप्रभु के साथ में रहने का विचार किया तो बनारस में चैतन्य महाप्रभु को मिलने को गया। ये हम घर छोड़ करके जब शिष्य बनने के लिए गया हमको शिष्य बना लीजिये, हम तो मिनिस्टर हैं। तो ये ही प्रश्न उनको पुछा था की महाराज हमको तो ये ग्राम्य व्यवहार में बड़ा भारी पंडितजी कहते हैं पर हमलोग सारस्वत ब्राह्मण हमलोग तो मुस्लमान का नौकरी कर लिया था। इसलिए उनको ब्राह्मण समाज अपने समाज से बहार कर दिया था। पहले ब्राह्मण समाज बड़ा कठोर था। कोई भी नौकरी कर ले विशेष करके, मुसलमान का नौकरी कर ले तो समाज उसको निकाल देता था। इसी प्रकार ये सनातन गोस्वामी ये ब्राह्मण घर में जन्म हुआ था। बाकी मुसलमान का नौकरी लेने का कारण उसका नाम हो गया था साकार मल्लिक मुसलमानी नाम है। फिर चैतन्य महाप्रभु का पास आने से उनको गोस्वामी बनाया, सनातन गोस्वामी। सनातन गोस्वायतम जब चैतन्य महाप्रभु के पास पहुंचा उनको यही प्रश्न किया था महाराज ये लोग सब हमको पंडित कहते है और पंडित बहुत संस्कृत, बहुत अच्छी तरह से जानते थे और उस समय फार्सी, उर्दू वो भी जानने पड़ता था गवर्नमेंट में। वो भी अच्छी तरह से जानते थे, मूर्ख नहीं था। और पंडित ही था वो। विविका तो है ये महाराज ये लोग हमको पंडित कहते हैं, बाकी हम कैसी पंडित है ये थोड़ा आप समझ लीजिए क्योंकि मैं आपने, मैं कौन है यही जानकर। मैं ऐसी पंडित हूँ। हम तो पंडिताई खूब करते हैं, सबको समझाते हैं, और जब प्रश्न करते हैं जब मैं कौन है, उसको जवाब हमारे पास है नहीं। अब समझ लीजिये की मैं कैसे पंडित हूँ। तो यही चलता है, हम मुर्ख हैं, बाकी चलता है पंडित का नाम से यही आजकल का दुनिया है। किसी को पूछा जाए क्या आप कौन है? वो बोलेंगे हम यही है मिस्टर सच एंड सच। साहब हम अमेरिका है, हम भारतीय है, हम ब्राह्मण है, हम क्षत्रिय है, और मैं सफ़ेद है, काला है, यही सब बताएगा। कोई बताएगा नहीं की हम ये शरीर नहीं है, हम शरीर छोड़कर हम आत्मा हैं, अहम् ब्रह्मास्मि। वो नहीं बताएगा। तो समझ लीजिये की सब मूर्ख हैं की नहीं। अपने कोई जानता नहीं और सब पंडित। ऐसा पंडित से क्या काम होगा जो अपने को ही जानता नहीं? इसलिए असल पंडित का पास जाना चाहिए अपने को समझने के लिए। जैसा अर्जुन वो आपने को नहीं समझता था? वो कृष्ण कहे तुम लड़ाई करो, वो समझता है क्या हमारा उधर मैं क्या नाम है? क्या नाम ग्रैंडफादर है, दादाजी? और भीषमा जी है, द्रोणजी जी है और हमारा भाई है वो दुर्योधन है और हमारा गुरु है उधर द्रोणाचार्य ये सब सोच-साच करके वो ये विचार, सिद्धांत कर लिया कृष्णा, मैं तो ये युद्ध, लड़ाई नहीं करूंगा। जो ये सब आदमी को हमारा, जो इसका मतलब क्या है? ये शरीर से जो संपर्क है वो शरीर संपर्क से वो अपने को समझता है ये सब हमारा शरीर का साथ का संपर्क था। इसको किस तरीके से। बाकी वो जानता ही नहीं, शहरी मैं नहीं हूँ। जब हमारा मूलवृत्ति जो है, ज्ञान है जब वही ठीक नहीं है, फिर शरीर से हमारा जिसका संपर्क है वो हम समझते हैं, जो ये हमारा पिता है, ये हमारा भाई है, ये हमारा स्त्री है, सभी का संपर्क है, वो कैसे ठीक होगा। जब तुम शरीर नहीं है। हाँ, ये ये ज्ञान देने के लिए और भगवान अर्जुन को समझाएं ये असल ज्ञान है। पहले समझना जो हम ये शरीर नहीं है। दुनिया में जितना झगड़ा चलता है, जो उसको सब समझता है, मैं ये शरीर हूँ। ये जो ब्रह्मात्मा, जिसको देहात्मा बुद्धि है उसको शास्त्र में कहते हैं गधा। “यस्यात्मबुद्धि: कुणपे त्रिधातुके स्वधि: कलत्रादिषु भौम इज्यधि:। यत्त्तिर्थबुद्धिः सलिले न कर्हिचि- जनेष्वभिगनेशु स एव गोखर: ॥ 13 ॥” गोखर:। “यस्यात्मबुद्धि: कुणपे त्रिधातुके, जिसका ये है ज्ञान है, ये जो शरीर यही मैं हूँ। “यस्यात्मबुद्धि: ‘कुणपे त्रिधातुके’ जो ये जो शरीर क्या चीज़ है ये तीन धातु का बनाया हुआ चीज़ है। हमारा आयुर्वेदिक शास्त्र में कहते हैं कफा, पित्त, वायु, ये तीन धातु। और ऍंग्रेज़ी मेडिकल साइंस में बताते हैं की बॉडी, ये शरीर, ये शास्त्र में कहते हैं ये सात धातु हैं। जैसा ये चमड़ा है, तो एक मसल है, तो एक बोन है फिर नर्व, ये खून है, और बहुत सी चीज़ है। मैला भी है, मूत्र भी है, और ये सब चीज़ लेकरके शरीर बना है।। इसमें तो ये सब धातु से बनाया हुआ जो सही है वो शरीर को समझता जो मैं हो वो हूँ, वो गधा है। ये शरीर से ऐसा एक जीव हम लोग बना सकते हैं। खून तो बहुत मिल सकता है हाँ ये स्लॉटरहॉउस में, उसमें खून ले आओ और हड्डी भी मिलेगा और चमड़ा भी मिलेगा और मूत्र भी मिलेगा। मूत्र भी मिलेगा। ये सब मिला मिला करके एक शरीर बनाओ और अच्छा ब्रिंदार, दिमाग वाला मिलेगा, कोई साइंटिस्ट बनाओ तभी तो हम समझेंगे जहाँ लोग साइंस में बड़ा उन्नति किया है। माल तो सम्मलित। ये सब माल लेकरके एक बड़ा आदमी, गाँधी, महात्मा गाँधी को बना लो। तब तो हम समझेंगे क्या आप लोग कुछ साइंस में, नहीं। यही मूर्खता है। ये खून, और चमड़ा, और हड्डी ही है। असल इसका भीतर में जो है: “देहिनोऽस्मिन् यथा देहे कौमारं यौवनं जरा तथा देहान्तर-प्राप्तिर धीरस तत्र न मुह्यति” ये शरीर का अंदर में जो आत्मा, जीवआत्मा उसको समझना है। उसका नाम है ब्रह्मा ज्ञान। ये जब तक हम लोग नहीं समझते हैं, और आत्मा को यदि हम समझ गया, तो भगवान को भी समझ गया। क्योंकि भगवान का अंश है। “ममैवांशो जीवलोके:” भगवान खुद कहते हैं। ये जीवात्मा जो है ये हमारा अंश है। यदि हमलोग अंश को समझ जाएँ; जैसे सोना का टुकड़ा है अगर हम सोना का टुकड़ा को समझ जाएँ तो सोना का खान क्या है वो भी हम समझ जायेंगे। समुद्र के पानी की एक बूंद, एक बूँद समुद्र का पानी, उसमे क्या-क्या चीज़ है एनालिसिस करके हमलोग देखे। तो समुद्र में क्या चीज़ है सब समझ जायेंगे। ये बड़े-बड़े केमिस्ट लोग कोई चीज़ दे दीजिये तो एनालिसिस करके बता देंगे की क्या है। इसी प्रकार आत्मा ज्ञान, ये जो जीवात्मा जो है, ये अंश है। ये शरीर को हम समझ जाएँ, तो फिर भगवान को भी समझ जायेंगे। जीवात्मा को समझना है, ये शरीर तो मैं नहीं हूँ। एहि समझना चाहिए। और शास्त्र में कहते हैं के ये भगवान का हमारा ऐसे शरीर नहीं है। भगवान को जहाँ निराकार बताया गया है उसको कहने का मतलब है जो हमारा जैसे आकार नहीं है। “अपाणि-पादो जवनो ग्रहिता”; जैसे कहते हैं भगवान चलता-फिरता नहीं उसका हात-पैर है नहीं। बाकि आप जो कुछ देते हैं, यग्न वो सब भगवान हात से उठा लेते हैं। और जैसे भगवान भगवद-गीता में कहते हैं, “पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति। तदहं भक्त्युपहृतम अश्नामि प्रयतात्मनः ॥26॥” तद अहम् भक्त्या उपहृतं। जो भक्ति से हमको जो पत्र-पुष्प भी देता है, बाकि भगवान तो भूखा है नहीं हमारे जैसे, तो भगवान कहते हैं हमको खाने को दो। तो भूखा नहीं हैं, हमको सिखातें हैं, की तुम भगवान का चीज़ सब खाते हो, एक दफे भगवान को देने से तुम्हारा क्या नुक्सान है। जो चीज़ हमलोग सब खाते है, ये तो भगवान का सब दिया हुआ है। “एको बहुनानं यो विदधाति कामान्”। ये फल-फूल, अनाज, जो कुछ हमलोग खाते हैं, अगर भगवान हमको नहीं देता तो हमे कहाँ से मिल सकेगा। फैक्ट्री में हम थोड़े ही बनाये हैं। जो वास्तविक भगवत भक्त होता है, वो समझते हैं जो भगवान इतना चीज़ हमको खाने को दिया है जैसा प्रेम से, एक बच्चा है, वो एक लोज़ेंजेस खाता है, और पिताजी को एक देता है, पिताजी खाइये, तो बहुत सुन्दर', तो पिताजी बहुत खुश होता है, हाँ, बेटा। तो भगवान को कुछ अभाव नहीं। भगवान का पास सब चीज़ है, भगवान। का चीज़ ही हम लोग खाते हैं। यदि भक्ति से, भगवान को ज्यादा नहीं, लुची पूरी भगवान नहीं कहते हैं। भगवान (गायब) और दूसरे देवी-देवता का पूजा कीजिए तो बहुत आपको सब संग्रह करने पड़ेगा। ये चीज़ चाहिए,, ये करिए, यग्न करिये तो इतना घी चाहिए, अनाज चाहिए। भगवत भजन करने के लिए कुछ नहीं चाहिए, केवल प्रेम चाहिए। भगवान कहते हैं “पत्रं पुष्पं फलं तोयं, यो मे भक्त्या प्रयच्छति”। असल चीज़ है भक्ति। पत्रं पुष्पं से भगवान का क्या होगा? भगवान का राज्य में अनेक प्रकार पत्र पुष्प है जो भगवान बनाते हैं। भगवान क्या खा नहीं सकते हैं? तथा शक्ति मतलब सब कुछ कर सकते हैं बाकि असल चीज़ क्या है जो “यो मे भक्त्या प्रयच्छति”, भक्ति से जो हमको देता है। तो असल चीज़ भक्ति है। तो भगवान को देखने के लिए, भगवान को प्राप्त करने के लिए, भगवान को खुश करने के लिए एक ही मात्र उपाय है वो भक्ति, और कुछ नहीं। “भक्त्या माम अभिजानाति यावान यश चास्मि तत्वतः” भगवान खुद कहते हैं। केवल भक्ति द्वारा हमको समझ पाएंगे। कहीं भगवान नहीं बताया कि ज्ञान से भगवान को समझ पाएंगे, और कर्म से भगवान को समझ पाएंगे, ये योग से भगवान को समझ पाएंगे। नहीं, भगवान कहते हैं “भक्त्या माम अभिजानाति यावान यश चास्मि तत्वतः” ‘तत्वतः तात्त्विक अगर ईश्वर को तुम पूरी सच्चाई में जानना चाहते हो"। यदि आपको इच्छा है तात्त्विक भगवान ये समझना। तात्त्विक समझना और साधारण समझना बहुत फरक है। कोई अगर समझ गया यदि कृष्णा है और एक दफ़े आये थे, मथुरा में जन्म लिया था। ये समझना और वास्तविक समझना भगवान क्या चीज़ है, क्योंकि हम लोग भगवान को ठीक ठीक नहीं समझते हैं इसलिए कोई भी आके खड़ा हो गया मैं भगवान हूँ, उसको मान लो क्योंकि जानते नहीं वास्तविक भगवान क्या है? इसलिए भगवान कहते हैं “मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद् यतति सिद्धये यतताम अपि सिद्धानाम् कश्चिन माम् वेत्ति तत्वतः” ये तात्त्विक समझ है की वास्तविक भगवान क्या चीज़ है। ये सब ऐसे ऊपर ऊपर मैं समझने से ये सब हुआ चलो हम लोग को सब ठगाके बन जाएगा। तात्त्विक समझना, वो तात्त्विक समझना कोई साधारण बात नहीं है। “मनुष्याणां सहस्रेषु”; करोड़ों व्यक्ति का गीता है, “कश्चिद् यतति सिद्धये” आप देखिएगा जितना है आप पूछिए आप क्या लाभ करने के लिए आप इतना परिश्रम करते हैं? गोल है रुपया। और ये मिनिस्टर, प्रेसिडेंट, कोई बोलेंगे नहीं की हम सिद्धि लाभ करने के लिए इतना परिश्रम करते हैं, कोई नहीं बोलेगा। कोई बोलेगा नहीं, जानते ही नहीं। क्या सिद्धि है? सब कोई कहेगा हमको चाहिए रुपया, हमको चाहिए मिनीस्टरशिप, हमको चाहिए प्रेसिडेंटशिप, हमको ये चाहिए, वो चाहिए, वो चाहिए, अनेक प्रकार। ये जो भगवान कहते हैं जो करोड़ों विकार विकार। कोई व्यक्ति सिद्धि लाभ के लिए प्रयास कर रहे हैं। “मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद् यतति सिद्धये”। वो सिद्धि क्या चीज़ है? वो सिद्धि है ब्रह्म ज्ञान? जब मैं ये शरीर नहीं है, मैं अहम् ब्रह्मास्मि। इसे सिद्धि कहते हैं। “मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद् यतति सिद्धये यतताम अपि सिद्धानाम् कश्चिन माम् वेत्ति तत्वतः” वो सिद्धि लाभ क्यों है जो वो क्यों है? ऐसा हज़ारों लोगों का विचार की कृष्ण को समझ सकते हैं, भगवान को समझ सकते हैं। ये कठिन है बहुत, बहुत कठिन। इसलिए भगवान कहते हैं ये जो कठिनता है भगवान को समझने के लिए इसको एक ही मात्र उपाय है “भक्त्या माम अभिजानाति यावान यश चास्मि तत्वतः” वही तत्व। यदि भगवान को आप तात्त्विक समझना चाहते है ये भगवद भक्ति को ग्रहण करने का है और भगवद भक्ति क्या चीज़ है: “श्रवणं कीर्तनं विष्णुः स्मरणं पाद-सेवनम् अर्चनं वंदनं दास्यम् सख्यम् आत्म-निवेदनम्” ये नौ प्रकार का पद्दति है। पहला पद्दति है श्रवणम; हाँ, जो एक मुनि है, हटा भगवान को देख लिया, भगवान को समझ लिया, ये सिद्धांत ना कीजिए। सुनिए, इसलिए भगवान सुनाने के लिए खुद ही कह रहे हैं कि क्या है ये भगवद गीता। भागवत गीता और कुछ नहीं है, भगवान खुद अपने को समझा रहें हैं। तो ये समझा रहा है, प्रस्तुत किया है भगवान कहते हैं तो ऐसी बात नहीं है जो आप, और जो अर्जुन, और मैं और जितने इधर हैं, ये जो पहले नहीं थे ये बात नहीं है। और अभी सब मौजूद हैं ये तो हम लोग सब देख रहे हैं और आगे जाकरके हम शून्य हो जाएंगे, ये भी ठीक नहीं है। आगे जाके भी हमलोग सब रहेंगे। और पहले भी थे और अभी तो है ही हैं देख रहे हैं। ये जीवन का समस्या है। जो पहले मैं क्या था, अभी मैं क्या है, और आगे जाके मैं क्या बन जाऊंगा। ये जीवन का समस्या है। क्योंकि हमारा जो जीवन है भगवान का ये सभी अंश है। जीव मात्र; तो पहले मैं क्या पेड़ था, कि गधा था, कि सुअर था, के देवता था, और अभी तो मनुष्य हुआ और आगे जाके के मैं क्या हो जाऊंगा। क्यों ये जो जीव हैं अनेक प्रकार के “जलजा नव-लक्षानि स्थावर लक्ष-विंशति” चौरासी लाख योनि है? तो हमको आगे जा करके क्या योनि मिलेगा? और पहले मैं क्या योनि में था और अभी क्या योनि में है, ये सब विचार करना है। ऐसे भूल जाये अभी तो हमको मनुष्य शरीर मिला है, बहुत सा रुपया मिला है, मज़ा करो, कोई मर जाए, क्या हो जाएगा? जैसा कि वो क्या नाम है चार्वाक मुनि कहते हैं “भस्मीभूतस्य देहस्य पुनर्गमनं कुतः भवेत् |”। ए जो नास्तिक हैं नास्तिक लोग कहते हैं जो ये “ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्”, तो घी खूब खा; और भाई हमारे पास तो पैसा है नहीं, तो ऋणं कृत्वा उधार लो। “यावत् जीवेत सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्” ऋणं कृत्वाघृतं पिबेत्”। घी तो हम लोग जानते हैं घी खाने से हमलोग बहुत मोटा-ताज़ा होते हैं। तो अगर पैसा नहीं है तो इंग्लिश में कहते हैं। भीक मांगो, उधर लो, चोरी करो, फिर देखा जाएगा भाई उधार लेते हैं, नहीं देंगे तो पाप होगा, फिर तो हमको मुश्किल होगा। तो उसका जवाब मैं चार्वाक कहते हैं "भस्मीभूतस्य देहस्य पुनर्गमनं कुतः भवेत्|” अरे तुम मर जाओगे, शरीर जला देगा, कौन आता है, किसका कौन? ये सब चलता है। ये सब नास्तिक आज नहीं हैं, पहले भी था। बाकि ऐसी जीवन करने से मनुष्य जीवन बर्बाद हो जायेगा। सुनना चाहिए। भागवत भक्त ज्ञान ही मनुष्य जीवन का एकमात्र ध्येय वस्तु है। इसलिए पूछना चाहिए। इसलिए शास्त्र में बताते हैं की “पराभवस तावद अबोध-जातो, यावन न जिज्ञासा आत्म-तत्त्वम्”; आत्मा तत्त्व जब तक जिज्ञासा नहीं करेंगे। जैसे सनातन गोस्वामी किया था की मैं कौन हूँ। इस प्रकार ये प्रश्न होना चाहिए और इसको अच्छी तरह से समझना चाहिए और उसको समझाने के लिए भगवान खुद ही मौजूद है। भगवद गीता में सब कुछ बताया है। इसको अच्छी तरह से आप लोग पढ़िए, इसको सुनिए, इसको समझिए, अपना जीवन को सफल कीजिये। खाली धूम-धाम करके पशु के जैसे आहार, निद्रा, मैथुन करने से जीवन सफल नहीं होता है। ये जो भगवान कहते हैं जो आगे जाके क्या हम लोग नहीं रहेंगे, ये बात नहीं है। बाकि किस तरह से हम रहेंगे, क्या रूप में रहेंगे, क्या योनि में हमारा जन्म होगा? ये सब सोचना चाहिए क्योंकि ये सब भगवद-गीता मैं बताया है की “ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्व-स्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः जघन्य-गुण-वृत्ति-स्थ अधो गच्छन्ति तामसाः” दो लोग सात्विक गुण को लाभ किया है उनको वो सब उर्ध्वा लोक में जाते हैं। जन लोक, महर लोक, तप लोक, सत्य लोक, हाँ और भी बताएं हैं। “यान्ति देव-व्रत देवन् पितृन् यान्ति पितृ-व्रतः भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद-याजिनो 'पि माम” या आप उच्च लोक, सत्य लोक में भी जा सकते हैं? आप यदि ‘मद-याजिनो 'पि माम’ यदि हमारा भक्त आप हो जाएगा तो हमारा लोक मैं आएँगे। तो भगवान के पास जाने से क्या लाभ होगा? माम उपेत्य कौन्तेय दु:खालयम् अशाश्वतं नाप्नुवंति” कि भागवत धाम में जाने से फिर हमको किसी को जो भगवद भक्त हो गया, उसका “दुखालयम अशास्वतः” ये जो दुनिया है, दुख का आलय है और वो भी सब दिन के लिए नहीं इधर छोड़ना ही पड़ेगा। जितना हम अच्छी तरह से मोटा ताजा मकान बनाया। बस एक दिन यमराज कहेंगे बस छोड़ो जी अब चलो इधर से, छोड़ने के लिए। ये सब सोचना चाहिए। जो आगे जाके क्या योनि में हमारा जन्म होगा, किधर जायेंगे? भगवान सभी कहते हैं ‘मद-याजिनो 'पि माम;’ तो इसलिए यदि मनुष्य जीवन में कुछ कोशिश करना है, किस तरह से भगवान का पास हम लोग जा सके, उसके लिए सोचना है। इसका नाम है कृष्णा कॉन्शिएसनेस मूवमेंट। ये हम लोग सिखाते हैं की किस तरह से भगवान के पास सब जाएं। और किस तरह से जाएंगे, केवल कृष्णा को समझने से तात्त्विक। वो जो भगवान बताएं “जन्म कर्म च मे दिव्यम् जो जानाति तत्वतः” ये तत्वतः। तात्त्विक; केवल यदि कृष्णा को आप समझ लिया तात्त्विक भगवान कृष्ण क्या चीज़ है तो फिर क्या लाभ होता है? “त्यक्त्वा देहं पुनर जन्म नैति माम ऐति”। केवल अगर कृष्णा को ही आप समझ लो आज कुछ बात नहीं। ये क्यों भगवान आते हैं, भगवान का स्वरूप क्या चीज़ है, कृष्णा क्या चीज़ है, यही भले ही समझ गया हम लोग, तो ये जन्म, कर्म दिव्यम साधारण नहीं है। भगवान का जन्म, कर्म ये सारा दिव्य। जो मनुष्य भगवान को हमारे जैसे ही समझता है, “अजानन्ति मां मूढ़ा मानुषी तनुमश्रितम्”| मूढ़ा वो गधा, जो कृष्ण को समझता है कि हमारा जैसे ही है। हम एक नकल करके कृष्णा हो जाए। ये सब ज्ञान से कोई लाभ नहीं होगा। हाँ इसलिए भगवान बताते हैं आप लोग सब कृपा करके भगवान की बातें सब सुनिए। भगवद गीता अच्छी तरह से आलोचना कीजिए और उस तरह से काम कीजिए सबका जीवन सफल हो। और हमलोग जो ये कृष्णा कोंशियेसनेस्स मूवमेंट चला रहे हैं, केवल कृष्णा को समझाने के लिए और हमारा कुछ नहीं। और अगर कोई समझ गया, और अगर एक भी आदमी समझ लिया हज़ारों व्यक्ति, हजारों आदमी के अंदर अगर एक भी आदमी समझ गया, तो उसका जीवन सफल है। थैंक यू वेरी मच, हरे कृष्णा। भगवान का अवतार का कोई ठिकाना नहीं। अनंत कोटि। शास्त्र में कहते हैं समुद्र का जो तूफान होता है ना, कोई बैठ-बैठ गिने तो गिन सकता है क्या। उसी प्रकार समुद्र के पास नदी में बैठ जाइये तो कितना शोर जा रहा है, एक, दो, तीन, चार, गिनते रहिए जीवन भर पता नहीं चलेगा। “रामादि-मूर्तिषु कला-नियमेन तिष्ठन नानावतारम् अकरोद् भुवनेषु किन्तु कृष्णः स्वयम संभवत् परमः पुमान यो” बाकी भगवान कहते हैं “अहम् सर्वस्य प्रभवो” जितना इंकार्नेशन है वो सब का कारण मैं हूँ। ये समझना चाहिए। “अहम् सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते”। ये जितना इंकार्नेशन है, अवतार है, सब हमसे ही होता है। “इति मत्त्व भजन्ते माम बुधः भाव-समन्वितः”; इतना ही हमलोग अगर समझ जाएं की भगवान का अनंत कोटि अवतार, सब अवतार, भगवान से ही होता है, इतना ही अगर कोई समझ जाए तो वो उसका जीवन सफल हो जायेगा। “इति मत्त्व भजन्ते माम बुधः भाव-समन्वितः”। बाकी वो जो सब अवतार है, ऐसी नहीं कोई भी आके खड़ा हो गया हम भगवान का अवतार हैं, नहीं। उसका शास्त्र से प्रमाण होना चाहिए। जिसने अवतार हैं शास्त्र में सब प्रमाण है। ऐसा नहीं कोई आके खड़ा हो गया हम भगवान हैं। सस्ता अवतार स्वीकार न करें। यह अच्छी बात नहीं है। गेस्ट: ये जो हमलोग हैं। जो अपने आप को बताते हैं, पहले आपने समझाया था की शरीर को चोला कहा जाता है और आत्मा उसके अंदर है उसको अहम् कहते हैं। और परमात्मा को जानने के लिए हम चाहते हैं। जब हम ही नहीं हैं तो चाहेगा कौन परमात्मा को जानने के लिए। प्रभुपाद: आप नहीं हैं कौन बोला। आप तो हैं? गेस्ट: हम नहीं हैं, जब आप कहते हैं आत्मा परमात्मा का अंश है। प्रभुपाद: हाँ, तो अंश होने से क्या। आप पिता का अंश नहीं हैं क्या? गेस्ट: हाँ, ठीक है। सिर्फ परमात्मा का तो मैं हूँ नहीं। माता का भी अंश हूँ, पिता का भी अंश हूँ।मैं हूँ नहीं। माता का भी हूँ, पिता का भी हूँ। ये शरीर चोला है और आत्मा--- प्रभुपाद: हाँ, ये बताया है “सर्व-योनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ती,” ये जितना योनियां हैं, जितनी मूर्तियां हैं, इनकी माता है प्रकृति और मैं इनका पिता। ये तो बता दिया है भगवान। गेस्ट: नहीं-नहीं मैं---। प्रभुपाद: नहीं सुनिए जैसे आप हैं, आपने बताया की आप पिता का भी अंश हैं और माता का भी अंश हैं। आप सुनिए न इसको, पिताजी का जो अंश है आप वो जीवात्मा है और माता का भी जो अंश है आप वो शरीर है, भौतिक शरीर। गेस्ट: जब परमात्मा को कहते हैं सर्वज्ञ, आत्मा परमात्मा का अंश है तो अल्प क्यों है? प्रभुपाद: आपका पिता सर्वज्ञ है, सब कुछ जानता है, आप जानता है सब कुछ? गेस्ट: नहीं, यही तो मैं कहत हूँ, मैं तो---- प्रभुपाद: ये होता है। जो पिता पंडित हो सकता है, पुत्र मूर्ख भी हो सकता है। तो मुर्ख पुत्र पिता के समान पंडित कैसे होगा? गेस्ट: नहीं, जैसा समुद्र है, समुद्र में भी बूंद है, उससे अलग नहीं होती। जो-जो उसमे नमक है, सार है, बूँद में भी है, समुद्र में भी वोही है, तो मैं अल्प हूँ, तो इसमें वो अल्पक्यता कहाँ से आया? प्रभुपाद: और जो समुद्र का बूंद है वो तो अल्प है ना? एक बात तो दिमाग आपका है नहीं। वो जो बूंद है वो अल्प है कि नहीं? समुद्र का बूंद है वो तो अल्प है वो आप समझते नहीं? भई, समुद्र का बूँद जो है वो तो छोटा है, वो समुद्र का समान कैसा हो जाएगा? ये इतना मुर्ख है, कैसा बताएगा? उसने सब चीज़ है, बाकी समुद्र में जितना टन salt है, उतना टन बूँद मैं है क्या? ये समझ तो नहीं चाहिए? वो बूंद है, उसमें थोड़ा सा निमक है, थोड़ा सा है, और समुद्र में है लाखों टन नमक। तो जीसको लाखों टन नमक का साथ में एक बूंद नमक कैसे समान हो जाएगा? इतना दिमाग तो होना चाहिए। जब समुद्र का बूंद हो गया तो उसमें सब चीज़ है मान लिया, बाकी समुद्र में लाखों टन आप वह नमक ना और इधर मैं छोटा तो इसको समझने में आपको मुश्किल होता है। इतना बुद्धि तो होनी चाहिए। छोटा का छोटा रहेगा, बड़ा का बड़ा। इसमें क्या मुश्किल है? ‘ममैवांशो’ भगवान का अंश है, भगवान का अंश भगवान के सामान हो जायेगा?। भाग पूरे के बराबर नहीं है; यह वैज्ञानिक रूप से स्वयंसिद्ध सत्य है। भाग भाग है, पूरा पूरा है। इसमें बहुत समझने में आपको क्या मुश्किल हो जायेगा? भाग कभी भी पूरे के बराबर नहीं होता। भाग में सारी रचना हो सकती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह पूरे के बराबर है। सोना का कोई अंगूठी हुआ और सोना का खान है। दोनों सामान हो जाएगा क्या? दोनों सोना है, इसको मान लिए, बाकि ये अंगूठी जो है और खान में बहुत फर्क है। ये कौन मुर्ख बोलेगा की अंगूठी खान हो गया।। ऐसा बहुत लोग होगा, पंडित नहीं बोलेगा। चीज़ वही है; गुणवत्ता एक, पर मात्रा भिन्न। उसको समझना चाहिए। बोलिये ठीक है की नहीं। मात्रा और गुणवत्ता, गुणवत्ता एक, पर मात्रा भिन्न। ये आग है और आगका एक बूंद है दोनों आग है। तो क्या आग का बूँद और बड़ा आग दोनों एक हो जायेगा। ये तो मूर्खता है। बड़ा आग है ये सब कुछ जला देगा और बूंद जो है कहीं भी गिर गया तो जरा सा जला देगा। ये सब शास्त्र में प्रमाण है। भगवान, भगवान में जो चीज़ है ये भगवान का रचनात्मक शक्ति, हमारा भी रचनात्मक शक्ति है। भगवान लाखों करोड़ों प्लानेट बना के हवा में उड़ा रहे हैं, आप बना सकते हैं ७४७ हवाई जहाज, बस और क्या।। बाकि भगवान जैसे बना सकते हैं क्या? ये करोड़ों, करोड़ों प्लेनेट को हवा में उड़ा रहा है। आप कर सकते हैं? तो आप भगवान के समान कैसे हो गया? ये सब दिमाग खराब वाला ये सब कहते हैं भगवान के समान हो गया। ये अच्छा आदमी कौन बोलता है? अच्छा आदमी नहीं बोलता है। पागल होता है, पागल। पागलपन न कीजिए; भगवान का नाम जपा कीजिये। यदि पागलपन छूटा नहीं तो पागल ही रहिये। जीवन को खराब कीजिये। आपने तो समझ लिया हम साहब मालिक हाँ, जितना बैंक है सब हमारा। मालिक क्या? तुम्हारे पास जितना है दो-चार-लाख रूपया। तुम बोलेगा जितना बैंक है दुनिया में हम सबका मालिक हैं। ये गधा, गधा लोग ऐसा बोलते हैं, अच्छा आदमी कोई ऐसा नहीं बोलता है।
चलो हरिनाम करते हैं, हरिबोल।
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