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720328 - Lecture BG 07.01 Hindi - Bombay

His Divine Grace
A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada



720328BG-BOMBAY - March 28, 1972 - 19:53 Minutes



Prabhupāda:

. . .manāḥ pārtha
yogaṁ yuñjan mad-āśrayaḥ
asaṁśayaṁ samagraṁ māṁ
yathā jñāsyasi tac chṛṇu
(BG 7.1)


HINDI TRANSLATION

मय्या आसक्त: मनः पार्थ
योगं युञ्जन मद-आश्रयः
असंशयं समग्रं माम्
यथा ज्ञानस्यसि तच चृणु

(भ गी ७.१) भगवान कैसे हैं? भगवान का रूप कैसा है, गुण कैसा है? लीला, गौर,रूप, लीला, परिकर, वैशिष्ट, पांच चीज़ भगवान। पहले नाम रूप। तो भगवान को समझने के लिए शास्त्र में एहि विधि बताये हैं की भगवान का नाम लीजिये। "नाम चिंतामणि कृष्णा चैतन्य रस विग्रह:"। भगवान का नाम चेतन वस्तु। नाम चैतन्य रस विग्रह, नित्य मुक्त शुद्ध;

नाम चिंतामणिः कृष्णश्
चैतन्य-रस-विग्रहः
पूर्णः शुद्धो नित्य-मुक्तो
'भिन्नत्वं नाम-नामिनोः

भगवान का नाम जैसे भगवान चेतन वस्तु सच्चिदानंद विग्रह। किसी प्रकार भगवान नाम भी चेतन वस्तु सच्चिदानंद विग्रह। थाट इस दी डिफ्रेंस। ये ही भगवान और हम लोग से इतना ही फरक है। भौतिक नाम जो है, जैसा आपको प्यास, यू आर थर्स्टी, आपको जल चाहिए, तो यदि आप जल-जल-जल-जल करेंगे तो आपको प्यास नहीं बुझेगा। क्यों, ये जो नाम है भौतिक और जल जो वस्तु है वो अलग है, डूअलिटी। दी मटेरियल वर्ल्ड इस कॉल्ड ड्यूल। क्यूंकि एक चीज़ से और एक चीज़ फरक। इधर नाम और नामी एक चीज़ नहीं है। परन्तु जो पर-व्योम है, आध्यात्मिक जगत, स्पिरिचुअल वर्ल्ड, उधर में नाम-नामी कोई फरक नहीं। इसको समझना चाहिए। "नाम चिंतामणि कृष्णा चैतन्य रस विग्रह:" चिंतामणि, आल स्पिरिचुअल।

नाम चिंतामणिः कृष्णश्
चैतन्य-रस-विग्रहः

पू:र्णः शुद्धो जैसे भगवान पूर्ण हैं, "पूर्णात पूर्णं एव अवषिश्यते" इसी प्रकार नाम भी पूर्ण है और शुद्ध है। नॉन-कंटामिनटेड बाई दी मटेरियल मोड्स। पूर्ण शुद्ध, ब्रह्म वस्तु, इसलिए शब्द ब्रह्म कहा जाता है। हरे कृष्णा मन्त्र जो है ये शब्द ब्रह्म है। पू:र्णः शुद्धो नित्य। इधर का जो नाम है; अभी हमारा नाम मिस्टर सच-एंड-सच तो वो नाम बदल जायेगा। जहाँ शरीर बदल गया और ये शरीर में ही बदल जाता है। ये तो नित्य नाम नहीं है। भगवान का जो नाम है पूर्ण शुद्ध नित्य मुक्त। मुक्त मीन्स ब्रह्म वस्तु यानि ये भौतिक जगत का कोई वस्तु नहीं है इसका नाम। क्यों? 'भिन्नत्वं नाम-नामिनोः। देखो उधर में नाम और नामी फरक नहीं, अभिन्न, दी सेम थिंग। उद्धरण से देखिये, ये जो यूरोपियन, अमेरिकन ये जो नौजवान सब इस मूवमेंट में योगदान किये हुए हैं इनको तो एक मात्र ही आधार है क्यूंकि इसको पहले कोई समस्कार नहीं था हिन्दू समस्कार नहीं था, ये कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र का जैसे हमारा सनातन धर्म है उधर वो सब कुछ नहीं है। तो ये सब होते हुए भी नाम का आधार से कितना सुन्दर और शुद्ध हो रहा है आप लोग देख सकते हैं। नाम का है। इनलोग का और कुछ इसमें मैजिक नहीं है। ये शुद्ध भाव से, अपराधहीन हो कर के, कोई अपराध नहीं करने से, भगवान का नाम कीर्तन कर रहे हैं और जैसे चैतन्य महाप्रभु बताये हैं "चेतो दर्पण मार्जनम" नाम भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु कहते हैं;

चेतो-दर्पण-मार्जनम् भव-महा-दावाग्नि-निर्वापणं
श्रेयः-कैरव-चन्द्रिका-वितरणम् विद्या-वधू-जीवनम्
आनंदमबुद्धि-वर्धनं प्रति-पदं पुरनामृतस्वादनम
सर्वात्मा-स्नपनम् परमं विजयते श्री-कृष्ण-संकीर्तनम्

ये चैतन्य महाप्रभु का कहना है की कलियुग में विशेष करके, सतयुग में नाम और नामी अभिन्न। कलियुग के नाम, तुलसीदास जी बताये हैं नाम का आधार से ही सब सिद्धि मिलती है। और चैतन्य महाप्रभु भी बताये हैं "इहा होइते सर्व सिद्धि होइबे तोमार" यू सिम्पली चांट, केवल भगवद नाम कीर्तन कीजिये। अपराध का विचार है। नाम कीर्तन करने के लिए तीन अवस्थाएं होती हैं: एक तो अपराध युक्त नाम होता है और एक नामाभास होता है और एक शुद्ध नाम। नामाभास से वो मुक्त हो जाते हैं और शुद्ध नाम से कृष्ण प्रेम होता है और अपराध युक्त नाम से दुनिया का सुख-दुःख होता है। ऐसे शास्त्र में विचार है। तो पहले तो अपराध युक्त नाम तो जरूर होगा। बाकि आहिस्ते-आहिस्ते चेतो दर्पण मार्जनम। जैसे-जैसे चित्त, दर्पण जो है वो मार्जित होते जायेगा नाम करने से ये पहले शुरू हो जायेगा। चेतो दर्पण मार्जनम, वो क्या मार्जित होना है, जो "अहम् ब्रह्मास्मि" मैं भौतिक वस्तु नहीं है, मैं ये शरीर नहीं हूँ, इसका नाम है चेतो दर्पण मार्जनम। दुनिया में जितना दुःख का कारण क्या है? देहात्म बुद्धि, "यस्यात्म बुद्धि कुनपे त्रि धातुके" ये जो तीन धातु के बनाये हुए जो शरीर हैं, इसको हम समझते हैं ये मैं हूँ। मैं हिन्दू है, मैं मुसलमान है, मैं क्रिश्चियन है, मैं इंडियन है, अमेरिकन है, ये जो उपाधि ये शरीर का है और क्यूंकि हमलोग ये उपाधि में फँस गए हैं इसलिए तमाम झगड़ा और दुःख, और कुछ नहीं। और ये कृष्णा कोशिएसनेस्स मूवमेंट है इसका असल उद्देश्य है उपाधि शून्य करना। "सर्वोपाधी विनिर्मुक्तं" सब उपाधि से मुक्त करने के लिए। देखिये इधर हमारा सोसाइटी में हिन्दू है, मुस्लिम ह। क्रिश्चियन है, ज्यूस है, अफ्रीकन है, सब जात है, सब देश का, सब धर्म का, सब धर्म से आये हैं। बाकि वो सब उपाधि शून्य हो गया है। इधर कोई भी है बो अपने को नहीं समझता है की मैं अमेरिकन है, हिन्दू है, ब्राह्मण है, क्षत्रिय है, चमार है, नहीं। वो सब समझते है मैं कृष्ण दास। जो चैतन्य महाप्रभु बताये हैं "जीवेर स्वररूप होय नित्येर कृष्ण दास"। एहि जीव का स्वरुप है। जीव का जो असल स्वरुप है वो कृष्ण का दास। बाकि उसको बीमार हो गया क्यों मैं दास क्यों हो गया? मैं मास्टर हूँ, मैं मालिक हूँ। ये बिमारी है। दास होने को नहीं चाहते हैं क्यूंकि उसको तो ज्ञान है नहीं की भगवान का दास होने से कितना फायदा है और क्या चीज़ है। नहीं, वो समझता है की ये दुनिया का दास होने से हमको तो जूता खाने पड़ेगा। तो हम दास नहीं हूँ। उनको जो वास्तविक भगवद तत्त्व ज्ञान है इसलिए वो दास होने को नहीं चाहता है। वो आखरी में भगवान होने को चाहता है। पहले देख लेता है की मिनिस्टर हो जाएँ, मास्टर हो जाएँ, बिरला हो जाएँ, वो हो जाएँ, वो जब सब फ़ैल हो जाता है, तब बोलता है भगवान हूँ। वो ही जो बीमार है मैं दास नहीं हूँ। तो चैतन्य महाप्रभु बताते हैं हैं की नहीं, ये सब छोड़ो। 'नमंत एव' "ज्ञाने प्रयासं उदपास्य नमंत एव" ये जो मेन्टल स्पेक्युलेशन की मैं भगवान है। थिस इस सिम्पल मेन्टल स्पेक्युलेशन। ये भगवान होना साधारण बात है क्या? हमलोग जिसको भगवान मानते हैं, भगवान रामचंद्र को मानते हैं, कृष्ण को मानते हैं जो अवतार ले करके इस दुनिया में आये थे। कितना अद्भुत, अलोकिक काम सब किया था। समुन्दर में वो पुल बना लिया था और पहाड़, पत्थर को डूबा नहीं, वो ऐसे-ऐसे ही खड़ा रहा। ये भगवान। भगवान कृष्णा सात वर्ष के उम्र में पहाड़ को उठा लिया ऊँगली में। तो अलौकिक जो किसी से, बड़े-बड़े योगी से भी नहीं हो सकता है, ये साधारण मनुष्य का क्या बात है, अलौकिक, और भगवान खुद भी कहते हैं;

मत्तः परतारं नान्यत्
किन्चिद अस्ति धनन्जय

तो असल बात है तो भगवत तत्त्व ज्ञान नहीं होने से ये सब दुर्बुद्धि होती है।

अवजानन्ति माम मूढा
मानुषीम् तनुम आश्रितम्

जो भगवत तात्त्व परम धाम अवजान्ंता, जो भगवान सर्व शक्तिमान, कितना बड़ा उनका काम, अलौकिक, ये सब मालुम नहीं होने से, ये आज कल जैसे चीप गॉड बन गया। इसका फल एहि हुआ है की सब नास्तिक हो गया है। एहि हुआ है। सब कोई समझता है मैं भगवान है। मैं क्या भगवान का मंदिर में जायेंगे, मैं किसको पूजा करूंगा, मैं किसको भक्ति करूंगा, मैं तो खुद ही भगवान है। और हमारा कुछ पाप नहीं है। मैं जो कुछ कर सकता हूँ। खूब पाप करो। ऐसे सब बड़े-बड़े स्वामी सब लेक्चर देता है। बोलता है तुम पाप से क्यों डरते हो, वो तुम्हारी इमेजीनेशन है, ये सब बात बताते हैं। इसीलिए ये जो गोड्लेसस्नेस पूरी दुनिया में, अभी जो भगवान, मैं जब अमेरिका में गया था वो लोग कह रहे थे की भगवान तो मर गया है। आप क्या भगवान का बात बोलेंगे। ये उनका विचार है। फिर कागज़ में लिखा की हमलोग समझा था की भगवान तो मर गया है। बाकि स्वामीजी कीर्तन का शुरू से भगवान को ले आये। इसको मान लिया। तो बड़ा; हमलोग जीवात्मा हैं। "न जायते न म्रियते" जीवात्मा जो भगवान का अंश है वि कभी मरता नहीं, न उसका जन्म होता है। अरे भगवान जो अंशी है वो मर गया, वो है नहीं। ये सब भूल विचार। इसलिए भगवान खुद बता रहे हैं;

मय्या आसक्त: मनः पार्थ
योगं युञ्जन मद-आश्रयः

भगवान का आश्रय ग्रहण करके; ये भगवान का भक्त का आश्रय ग्रहण करके, भगवान और भगवान का भक्त; भगवान का भक्त है सेवक भगवान और भगवान खुद है सेव्य भगवान। तो भगवान और भगवान का भक्त क्या है की वो भगवान जैसी बताते हैं वो भी वैसे बताते हैं। उसमे कुछ कारीगरी करके, इधर-उधर बात करके भगवान को उड़ा नहीं देते हैं। ये जो हमलोग भगवद-गीता मैक मिलन कंपनी हमारा छपता है भगवद-गीता एस इट इज़ वो बिक रहा है। वी स्टार्टेड इन १९६८ एंड फ्रॉम ६८ उपटू नौ थे हैव गोट ६ एडिशन्स एंड ईच एडीशन थे आर पब्लिशिंग नॉट लेस्स देन ५०००० कपीस। और अभी रेसेंटली हमलोग भगवद-गीता १० लार्ज एडीशन पब्लिश कर रहा हूँ जो की सब प्रत्येक श्लोक उसका एक-एक शब्द का अर्थ दिया है, ट्रांस्लेशन, ट्रांस्लिट्रेशन और परपोर्ट, वो भी मैकमिलन कंपनी अभी छपेगा अगस्त मास में निकलेगा। वो बहुत भारी किताब, ११०० पेज। तो मैकमिलन कमपनी का ट्रेड्स मैनेजर जो है रीसेंट रिपोर्ट है नहीं तो वो तो बिज़नेस मैन है, क्यों हमारा किताब छापेगा। वो देखता है ये जो भगवद-गीता एस इट इस इसका डिमांड बढ़ रहा है। और जितने एडीशन हैं वो सब कम होते जा रहे हैं। अभी हम सुना है रेलेबल सोर्स से की नाम नहीं लेने चाहता हूँ, प्रसिद्द स्वामीजी कोई अमीर का घर में भागवत पाठ करने के लिए बुलाया गया था और उनको ग्रहस्त सभी बताये की आपका वेदांत पठान न कीजिये इधर, जैसे-जैसे है वैसे बताइये। ये हमलोग का प्रचार का कुछ फल हुआ। ये जो शास्त्र ले करके, वेदांत का नाम ले करके उल्टा-सीधा समझना दैट हैस स्पॉइल्ड दी होल थिंग। व्याग्र माने सारदूर। एक आदमी को पूछा गया, मास्टर साहब को 'मास्टरजी व्याग्र का क्या अर्थ होता है? वो बोलै सारदूर। भला वो तो व्याग्र समझते नहीं और एक कठिन शब्द दे दिया सारदुर। चैतन्य महाप्रभु जब सन्यास लिया था तो एक सार्वभौम भट्टाचार्य, बहुत भारी एक न्यायायिक, लोजीशियन और मायावादी। तो चैतन्य महाप्रभु जब जग्गनाथ पूरी में गए और भगवान का मंदिर में जा कर के जग्गनाथ का मूर्ति देखा उसी समय मूर्छित हो गया। कर उसका सेन्स नहीं है, उन्कोंशियस। तो सार्वभौम भट्टाचार्य, राज पंडित उस समय उपस्थित थे। तो वो तो पंडित हैं, जानते हैं की ये तो साधारण बात नहीं है, ये तो साधारण भक्त नहीं है जो भगवान को देखते ही मूर्छित हो गया। और वो परख भी किया। रुई भी ले आया, नाक में लगाया, पेट में भी देखा, स्वास तो चल रहा है। देखो जिसको ये समाधी हो जाती है उसको श्वास सब कुछ बिलकुल बंद हो जाता है। जब समझ गया की ये व्यक्ति साधारण नहीं है, वो नौकर-चाकर को बोलै की देखो जी इसको हमारा घर में ले कर के जाओ। तो उनको घर में ले गया फिर उनका सब जो पार्षद थे वो आये वो हरी कीर्तन किया हरे कृष्णा, फिर उनको सेन्स आया। तो ये चैतन्य महाप्रभु की अवस्था ऐसी है। सार्वभौम भट्टाचार्य उनको बताया, वो तो चौबीस वर्ष, उनका बच्चा का स्वरुप, की देखो जी तुम तो बड़ा कम उम्र में संन्यास ले लिया। ये तो तुम्हे लिए उच्चित नहीं है। सब गृहस्थ छोड़ करके (audiio stopped)