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720118 - Lecture Hindi - Jaipur

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His Divine Grace
A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada



720118LE-JAIPUR - January 18, 1972 - 11:15 Minutes



Prabhupāda:


HINDI TRANSLATION

प्रभुपाद:उसके दिमाग में घुसता ही नहीं किस लिए वो निराकार कर देता है। क्यूंकि बुद्धि उसका कम है न। वो समझ नहीं पाता है। इसलिए भगवान कहते हैं

मनुष्याणां सहस्रेषु
कश्चिद् यतति सिद्धये
यतताम अपि सिद्धानाम्

वो सिद्धि लाभ किये हुए भी समझता नहीं की कृष्णा स्वयं भगवान हैं। बड़ा मुश्किल है। इसलिए स्वयं भगवान आकरके समझाते हैं। इसलिए भगवान की कृपा होने से सब समझ में आता है नही तो साधारण सिद्धि लाभ करने से भी वो कुछ भी समझ में नहीं आता है। जैसे ब्रह्म संहिता में;

पंथास तु कोटि-शत-वत्सर-संप्रगम्यो
वायोर अथापि मनसो मुनि-पुंगवानाम

बड़े-बड़े मुनि पुंग, साधारण मुनि नहीं, मुनि श्रेष्ट, पुंग श्रेष्ट को कहा जाता है, बहुत भारी, वो भी भगवान को समझ नहीं पाएंगे। बिना भगवान की कृपा भगवान को कोई नहीं समझ पाएंगे। और जगह भगवान बताये हैं "भक्त्या मां अभिजाणाति" वो समझने का उपाय एहि भक्ति है, ज्ञान नहीं, कर्म नहीं,योग नहीं, ये सब पद्धति से कोई भगवान को समझ नहीं पायेगा। इसलिए भगवान कहते हैं,

मनुष्याणां सहस्रेषु
कश्चिद् यतति सिद्धये

सिद्धि लाभ करने से क्या है। योग सिद्धि लाभ आप कर सकते हैं की हवा से उड़ जाएँ, ये योग सिद्धि है, लघिमा सिद्धि और कुछ मैजिक दिखा रहे हैं , ये सब आप कर सकते हैं योग सिद्धि से। बाकि उसके द्वारा भगवान को नहीं समझ पाएंगे। ये संभव है नहीं। और ज्ञान का बहुत बड़े-बड़े बात कर सकते हैं ये ब्रह्मा है, ये ब्रह्मा नहीं है। बाकि उसके द्वारा आप भगवान को नहीं समझ पाएंगे। ये भगवान खुद बताये हैं,

मनुष्याणां सहस्रेषु
कश्चिद् यतति सिद्धये
यतताम अपि सिद्धानाम्
कश्चिन मां वेत्ति तत्त्वतः

बाकि ये जो कृष्णा कॉन्शियसनेस्स मूवमेंट है, आंदोलन है, इतना सरल, ये जो भगवान कृष्ण को समझ गया, अब उसको चरण में आत्म समर्पण कर दिया इसका कारण है ये भगवान की कृपा। वो जो भगवान चैतन्य महाप्रभु कुल से आकर के सबको कृष्ण भक्ति, कृष्ण प्रेम दे रहे हैं। ये चैतन्य महाप्रभु का आश्रय करने से बहुत जल्दी भगवान कृष्ण को समझ पाएंगे। इसलिए उसी तरह,

श्री-कृष्ण-चैतन्य प्रभु-नित्यानंद
श्री-अद्वैत गदाधर श्रीवसदि-गौरा-भक्त-वृंदा

इनको नमस्कार करके फिर जपे

हरे कृष्णा हरे कृष्णा
कृष्णा कृष्णा हरे हरे
हरे रामा हरे रामा
रामा रामा हरे हरे

ये मन्त्र जपा जाये तो बहुत जल्दी काम हो जायेगा। ये आप लोग की कोई मुश्किल नहीं है। केवल शास्त्र विधि जो है उसको ग्रहण करना। ज्ञानं-विज्ञानं, विज्ञान से काम कीजिये तो भगवान वो तो खुद ही आते हैं की हमको लेयो। भगवान कृष्णा कहते हैं, खुशामदी कर रहे हैं की देखो हम तुम्हारे सामने हैं, ये देखो हमारा बृन्दावन लीला देखो और तुम भी इधर आकर के हमारा साथ वो राखाल बालक हो करके हमारा साथ खेल सकते हो, गोपी बन करके हमारा साथ आनंद ले सकते हो और हमारा माँ भी बन सकते हो और हमारा बाप भी बन सकते हो, हमारा मित्र भी बन सकते हो, हमारा गाय भी बन सकते हो, जो चाहे वो, उसी तरह से आओ हमारे साथ। इसीलिए भगवान आते हैं और लीला प्रकट करके हमको दिखते हैं। बाकि और चैतन्य महाप्रभु कहते हैं अगर कुछ भी नहीं समझते हो तो केवल भगवान का नाम ग्रहण करो। केवल,

हरे कृष्णा हरे कृष्णा
कृष्णा कृष्णा हरे हरे
हरे रामा हरे रामा
रामा रामा हरे हरे

इसको जपा करो। एक दिन तुम्हारा भाग्य सुप्रसन्न हो जायेगा और भगवान का दर्शन हो जायेगा। ये चैतन्य महाप्रभु, इतना सरल ये शास्त्र सिद्धांत है। हरेर नाम हरेर नाम हरेर नामैव केवलम् कलौ नास्त्य एव नास्त्य एव नास्त्य एव गतिर अन्यथा ये कलियुग का साधन है भगवान को; भगवान बहुत सस्ता कीमत हो गया ये कलियुग में। जैसा कलियुग महा पाप युग है तो महा पाप युग होते हुए भी भगवान अपने को बहुत सस्ता कर देते हैं। तो तुमको जो ज्ञान, ध्यान, धारणा, कुछ नहीं करना पड़ेगा, वन में नहीं जाने पड़ेगा, जंगल में नहीं जाने पड़ेगा, कहीं भी बैठ करके,

हरे कृष्णा हरे कृष्णा
कृष्णा कृष्णा हरे हरे
हरे रामा हरे रामा
रामा रामा हरे हरे

अपराध शुन्य हो करके नाम जपा करो, भगवान की कृपा से एक दिन तुम्हारा भाग्य सुप्रसन्न हो जायेगा और भगवान का दर्शन हो जायेगा। ये शास्त्र का विधि है तो इसलिए ये जो आप देखते हैं की ये अमेरिकन, यूरोपियन सब वैष्णव हो गया है, ये चैतन्य महाप्रभु की कृपा से। चैतन्य महाप्रभु की ऐसी कृपा है। चैतन्य महाप्रभु स्वयं कृष्णा हैं। कृष्णा सब को बताया,

सर्व धर्मान परित्यज्य
मां एकम शरणम व्रज

सब छोड़ो, सब झूठा धर्म सब छोड़ो, एक मात्र ये असल धर्म है "धर्मं तू साक्षाद भागवत प्रणीतं" इसको ग्रहण करो। इधर-उधर बात में क्यों फसते हो। भगवान खुद कहते हैं जो दुसरे-दुसरे देवता को भजन करता है उसको बुद्धि नष्ट हो गया।

कामैस तैस तैर हृत-ज्ञानः
प्रपद्यन्ते न्या-देवताः

और दुसरे देवता को; दुसरे देवता को अपमान करना नहीं है। बाकि भजनीय वास्तु क्या है वो भगवान, एकं। इसलिए भगवान कहते हैं, "सर्व धर्मान परित्यज्य मां एकम" और नहीं। ये नहीं समझे की थोड़ा इसको भी भक्ति कर ले और उसको भी थोड़ा भक्ति कर ले, उसको भी पूजा कर ले, जहाँ से जो भी मिल जाए। ये इसमें एकाग्रता नहीं होता है। एकांत भाव से भजन करना चाहिए। "भजते मां अनन्य भाक" और दुसरे में नहीं। ये चीज़ उनको सिखाया जाते है की एकाग्र भाव से केवल कृष्णा में मन को अर्पण कर दिया और कितना जल्दी इसका काम हो गया, हमलोग सब देख सकते हैं।

मनुष्याणां सहस्रेषु
कश्चिद् यतति सिद्धये
यतताम अपि सिद्धानाम्

ये जो भगवान को नहीं समझ सकते हैं, बाकि भगवान खुद चैतन्य रूप में आकर के अपना व्यवहार से दिखा रहे हैं की किस तरह से तुम भगवान को तुम प्राप्त कर सकोगे। चैतन्य महाप्रभु को और कुछ काम नहीं था, केवल कीर्तन करते। "संकीर्तनाय ये पितरो" वोही संकीर्तन का पिता चैतन्य महाप्रभु। और सफल भी है सब जगह में देखिये जहाँ-जहाँ कीर्तन हो रहा है बहुत जल्दी अभी हमारा अफ्रीका और नैरोबी में भी बहुत उत्सव होगा। ये छब्बीस जनुअरी से और इकतीस जनुअरी तक बहुत भारी उत्सव होगा और मैं भी उधर जा रहा हूँ और मेरा आदमी भी सब उधर जा रहे हैं। तो सारा दुनिया में ग्रहण कर रहे हैं क्यों ये चैतन्य महाप्रभु की कृपा है, क्यूंकि ये संकीर्तन का माध्यम से "परम विजयते श्री कृष्णा संकीर्तनम"। चैतन्य महाप्रभु आशीर्वाद किया है;

चेतो-दर्पण-मार्जनम् भव-महा-दावाग्नि-निर्वापणं
श्रेयः-कैरव-चन्द्रिका-वितरणम् विद्या-वधू-जीवनम्
आनंदमबुद्धि-वर्धनं प्रति-पदं पूर्णामृतस्वदानं
सर्वात्मा-स्नपनम् परमं विजयते श्री-कृष्ण-संकीर्तनम्

ये कलियुग में श्री कृष्णा संकीर्तनम ही विजय लाभ कर सकता है, और कोई चीज़ विजय लाभ नहीं कर सकता है। ये सरल है, कलयुग का आदमी सब पतित है;

मंदः सुमंद-मतयो
मंद-भाग्य ह्य उपद्रुत

उसको मंद सब सुमंद है बहुमत होकर। भगवान को छोड़कर के सब अपना-अपना अलग-अलग धर्म निकाल लेते हैं, ये धर्म है, वो धर्म है, इसलिए कहते हैं सुमंद मतयो, एक-एक का मंद सब सुमंद है और सुमंद भाग्य, भाग्य भी सुमंद है। इतना सरल से भगवान को मिल सकते है, वो उसमे नहीं जायेंग। इधर-उधर ले आएंगे। इसलिए मंद भाग्य, वास्तविक मंद भाग्य। इसलिए चैतन्य महाप्रभु कहते हैं ये सब मंद भाग्य बुद्धि से "नामनाम अकारि बहुधा निज-सर्व-शक्तिः"। भगवान चैतन्य महाप्रभु कहते हैं की देखो भगवान का नाम में सब भगवान की शक्तियां हैं। भगवान अनंत शक्तिमान, सर्व-शक्तिमान, भगवान का नाम में भी। ये तो भगवान का नाम और भगवान में कोई अंतर नहीं है। पृथक नहीं, "नाम्नाम अभिनत्य नाम नामिनः"। तो चैतन्य महाप्रभु कहते हैं "नामनाम अकारि बहुधा निज-सर्व-शक्तिः तत्रारपित"। भगवान के नाम में अनेक भगवान की जो शक्तियां हैं वो उसमे है और "नियमित स्मरण न कालः"। अगर पूजा-पाठ करना है तो उसका बहुत नियम है और नाम जप करने के लिए कोई नियम है नहीं। कहीं भी, किस समय में भी, किस अवस्था में भी, कोई देश में, कोई व्यक्ति भी नाम ग्रहण कर सकता है। "नियमित स्मरण न कालः एतादृशी तव कृपा भगवन ममापि" तो कहते हैं की भगवान कलियुग के लिए आप इतना कृपा किये हैं "दुर्दैवं इदृशं इहाजानि नानूरागः" परन्तु हमारा दुर्भाग्य ऐसा है जो नाम ग्रहण करने में हमारी रूचि नहीं है। ये चैतन्य महाप्रभु कहते हैं। इतना सरल उपाय भगवान को लाभ करने के लिए, उसमे हमारा रूचि नहीं है और इधर-उधर बात में, वाक चातुर्य से देखो जी तुम भगवान है, हम भगवान है, कहाँ-कहाँ दौड़ते हो, भगवान रास्ते-रास्ते में घूम रहे हैं और भगवान बढ़ गया है इत्यादि-इत्यादि और हम भगवान होक आये हैं, हमको ग्रहण करो। ये सब धोकेबाजी में आदमी सब फँस जायेगा। और जो सरल उपाय है, जो केवल मात्र भगवान का नाम ग्रहण करने से भगवान को मिल सकेगा शास्त्र का निर्देश अनुसार बड़ा-बड़ा आचार्य लोग का निर्देश, उसको हमलोग ग्रहण नहीं करते। ये सब दुर्बुद्धि छोड़ दो, छोड़कर के एकांत भाव से भगवान का नाम ग्रहण कीजिये, देखिये कितना जल्दी भगवान का लाभ होता है और आगे जा करके कितना जल्दी भगवान का दर्शन होता है। थैंक यु वैरी मच। हरे कृष्णा