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731026 - Conversation Hindi - Bombay

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His Divine Grace
A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada



731026R1-BOMBAY_Hindi - October 26, 1973 - 07:33 Minutes



HINDI TRANSLATION

गेस्ट: विश्वास प्रभुपाद: विश्वास नहीं फैक्ट। विश्वास तो वो ब्रम हो सकता है। भूल से कोई काम कर गया वो भी विश्वास होता है। फैक्ट इस फैक्ट। तो ये सब, ये साइंस है। उसको अच्छी तरह से समझने से भगवान कृष्ण क्यों सबसे बड़ा है मालूम होगा। थिस इस ए ग्रेट साइंस। वो तो भगवद भक्त लोग समझ सकते हैं, साधारण लोग नहीं समझ सकते हैं। बाकि शास्त्र का विचार एहि है की; ईश्वरः परमः कृष्णः सच-चित्त-आनंद-विग्रहः अनादिर आदिर गोविंद: सर्व-कारण-कारणम भगवान खुद भी बताते हैं भगवद-गीता में की "मत्तः परतरं नान्यत" उनसे बढ़कर हायर अथॉरिटी और कोई है नहीं। ये बात है। "अहम् आदिर ही देवानाम" "आई ऍम दी ओरिजिनल पर्सन ऑफ़ आल दी डेमिगोड़्स"। और भी बताया है भगवान भगवद-गीता में "यान्ति देव व्रत देवां" जो और दुसरे देवता को भजन करता है वो देवलोक में जायेगा। और "मध्य जिनो अपि यान्ति माम", कोई फरक है? "आब्रह्म-भुवनाल लोकाः पुनर आवर्तिनो 'र्जुन'" देव लोक में आप जाइये फिर उदाहर से भूम के आना ही पड़ेगा 'पुनर आवर्तिनो 'र्जुन'। गेस्ट: तो महाराज कृष्णा विष्णु का अवतार है। प्रभुपाद: विष्णु कृष्ण का अवतार है। भगवान कहते हैं "अहम् आदिर ही देवानाम" गेस्ट: "यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत" "परित्राणाय साधुनाम" हम जब कहते हैं तो भगवान का अवतार प्रभुपाद: भगवान का अवतार है। श्रीजाम्यहम् का अर्थ होता है जो मैं उपस्थित होता हूँ। आत्मानम्, अपने को उपस्थित करता हूँ। जब कृष्ण भगवान आते हैं तो जैसा ये विष्णु है, ये ब्रह्माण्ड में एक विष्णु लोक है वो विष्णु से अवतार होता है। जैसे सूर्य देव से सूर्य का उदय होता है इसका मतलब नहीं है की सूर्य देव सूर्य का पिता है। वो सूर्य देव उधर से उदय हुआ। इसी प्रकार भगवान जब प्रकाश होते हैं कोई सोर्स से होते हैं। ये जो भगवान देवकी पुत्र हो कर के जन्म लिए। तो इसका मतलब नहीं है की देवकी भगवान को पैदा किये। वो एक प्रथा है, विधि है। तो थिस इस ए ग्रेट साइंस। असल बात है; इसलिए भगवान कहते हैं

जन्म कर्म च मे दिव्यम्
जो जानाति तत्वतः

तात्त्विक समझना चाहिए। अगर कोई तात्त्विक इसको समझ जाये तो फिर तत्त्व देहम, वो मुक्त हो गया।

त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म
नैति माम् एति कौन्तेय

तात्त्विक समझना चाहिए।

मनुष्याणां सहस्रेषु
कश्चिद् यतति सिद्धये
यतताम अपि सिद्धानाम्
कश्चिं माम् वेत्ति

तात्त्विक समझना चाहिए। दी साइंस, वी हैव टू अंडरस्टैंड दी साइंस। और वो जो साइंस को समझ गया वो तो मुक्त हो गया। गेस्ट: (नॉट क्लियर) प्रभुपाद: भागवत में कहते हैं अवतार को बताये हैं और आखरी में बताया गया है जो ये जितना अवतार है ये सब कोई अंश है और कोई कला है "एते चाँश-कलाः पुंसः" ये जो परम पुरुष जो है ये किसी का, परम पुरुष विष्णु किसी का अंश है किसी का कला है। "कृष्णस तू भगवान स्वयं"। बाकि कृष्ण जो नाम दिया गया है ये स्वयं भगवान है। गेस्ट: (नॉट क्लियर) प्रभुपाद: सब भगवान हैं। इसमें कोई तकरार नहीं है। राम भगवान हैं, विष्णु भगवान हैं, कृष्ण भगवान हैं, बाकि आदि जो है वो कृष्ण।

रामादि-मूर्तिषु कला-नियमेन तिष्ठन
नानावतारम् अकरोद् भुवनेषु किन्तु
कृष्णः स्वयम संभवत् परमः पुमान यो

गेस्ट: (नॉट क्लियर) प्रभुपाद: वो शंकर को बड़ा मानो न। वो तो बात ये है की शास्त्र का विचार जो है उसको तो लेने होगा न। जो जुस्को पूजा करते हैं उसको तो बड़ा मानते ही हैं नहीं तो क्यों पूजा करेंगे? वो तो दूसरी बात है। और दुसरे देवता का भी पूजा करते हैं उसके लिए भगवद-गीता में विषय बताया है

कामैस तैस तैर हृत-ज्ञानः
यजन्ते न्य-देवताः

काम का द्वारा है, क्यूंकि दुसरे देवता का जो भजन करते हैं कुछ प्राप्ति करने के लिए। शिवजी से प्रार्थना किया 'महाराज हमको ऐसा वर दीजिये की हम जिसका सिर में हात लगाया वो उड़ जाये। शिवजी तो आशुतोष, अच्छा ठीक है ले। फिर बोलता है आपके सिर में हम हात लगाके देखेंगे, एहि होता है। ये तो बड़ा मुश्किल किया हमारा सिर में हात लगाना चाहता है। सब जगह में गया, फिर विष्णु के पास गया की महाराज, तो विष्णु कहते हैं की महाराज आप तो सबको ऐसे-ऐसे वर दे देते हैं। तो विष्णु महाराज से ऐसे प्रछन्न किया की हो सकता है तुम अपना सिर में हात लगा के देख न। रावण को शिवजी खूब वर दिया। आखिर में रामचंद्र जब उसको मारने को खड़ा हो गया कोई नहीं रक् सका। अच्छा थोड़ा कीर्तन कीजिये "हरे कृष्णा"।