720122 - Lecture Hindi - Jaipur: Difference between revisions
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प्रभुपाद: (नो ऑडियो) भगवान का आस्वादन मिल सकता है। ये सब विचार है। इसलिए भगवान सीखा रहे हैं "रसो हम अप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशि सूर्यः"। यदि आप इसको अनुसंधान करें ये सूर्य का किरण किधर से आता है, तो आप रिसर्च कीजिये न, जीवन भर रिसर्च कीजिये। समझ लीजिये आप सूर्य तक पहुँच गया। देखो ये जो सूर्य किरण है किधर से निकाल रहा है। अब फिर जाके रेसेरच कीजिये की सूर्य कहाँ से आया है ऐसा अगर आप उसको रेसेरच करते रहिएगा, तो आगे जाके देखिएगा की कृष्णा सब का मूल है। | |||
:अहम् सर्वस्य प्रभवो | |||
मत्त सर्वं प्रवर्तते | |||
तो दो किस्म का ज्ञान है इंडक्टिव और डिडक्टिव। जैसा रिसर्च करके जाइये की सूर्य का किरण कहाँ से आता है और सूर्य कहाँ से आता है, वो सूर्य नारायण कहाँ से आता है; जाइये आगे बढिये, ब्रह्मा तक पहुंचिए, फिर ब्रह्मा कहाँ से आता है, फिर गर्भोदकशायी विष्णु के पास पहुँचिये, फिर उधर जाईये, वो कहाँ से आता है, तो ये कारणोदकशायी विष्णु से आता है, फिर कारणोदकशायी विष्णु कहाँ से आता है, ये संकर्षण से आता है, संकर्षण कहाँ से आता है, नारायण से आता है, नारायण कहाँ से आता है। इसी तरह से जाइये आगे और आगे जाके देखिएगा; | |||
:ईश्वरः परमः कृष्णः | |||
:सच्चिदानंदविग्रह: | |||
:अनादिर आदिर गोविंद: | |||
:सर्व-कारण-कारणम | |||
तो आप चाहे खुद रिसर्च करके देख लीजिये नहीं तो परंपरा से गुरु का बात मान लीजिये। दोनों में आपका कारण हो सकता है। जो योग्य गुरु है परंपरा से आ रहे हैं वो जो कह दिया की देखो जी "कृष्णस तू भगवान स्वयं"। जैसा उदहारण समझ लीजिये की ये लोग को हम कह दिया भगवान एक ही है-कृष्णा, ये लोग मान लिया। भगवान का नाम लेते रहते हैं बस। अब खुद तो बड़ा सुखी है और आगे बढ़ रहा है। प्रमाण देखिये। तो दोनों तरफ से क्या लाभ होता है। एक तो आप दौड़ते रहिये जीवन भर "चिरम विचिन्वन" चिर काल चिंता करते रहिये 'भगवान क्या चीज़ है, भगवान क्या चीज़ है' ये एक रास्ता है ज्ञान लाभ करने के लिए और एक रास्ता है योग्य गुरु जो बोल दिया उसको आप मान लीजिये, काम ख़तम। जैसे भगवान कहते हैं; ये भगवान का बात हमलोग मान लें तो फिर भगवान को समझने में क्या देर लगता है, क्या रिसर्च का ज़रुरत है केवल समय नष्ट करना। भगवान कृष्ण जब बोलते हैं "मत्तः परतरं न अस्ति" मुझसे बढ़कर कोई पर तत्त्व है नहीं तो मान लेयो, काम ख़तम। फिर भगवान को जोड़ने के लिए वो थियोसोफिकल अस्सोसिएशन, थिस अस्सोसिएशन, थाट अस्सोसिएशन, न जाने क्या-क्या सब बनाया है भगवान का मॉडल। भगवान ऐसा मिलता है क्या? "चिरम विचिन्वन" | |||
:अथापि ते देव पदाम्बुज-द्वय- | |||
:प्रसाद-लेषानुगृहित एव हि | |||
:जानाति तत्वं भगवान-महिम्नो | |||
:न चान्या एको 'पि चिरम विचिन्वन | |||
जिसको भगवान की थोड़ा ही कृपा मिली है वो ही कुछ भगवान को समझ सकता है। "नायं आत्मा प्रवचनेन लभ्यो" उपनिषद् में कह दिया है। ये जो आत्मा है, ये केवल प्रवचन करने से नहीं मिलता है। "न मेधया" औअर दिमाग बहुत अच्छा रहने से नहीं मिलता है, "न बहुना श्रुतेन" और वो बहुत वेद-वेदांत पाठ करने से नहीं मिलता ह। "यम एवैष वृणुते तेन लभ्यः" जिसको भगवान कृपा करते हैं, उसको मिलता है। भगवान खुद भी कहते हैं "भक्त्या मां अभिजाणाति यावां यस चास्मि तत्त्वतः" केवल भक्ति से हमको जान सकता है। नहीं तो और कोई उपाय नहीं है। इसलिए सब के लिए उचित है जो ये कृष्ण भक्ति, कृष्णा भावनामृत हम जो सब प्रचार कर रहे हैं, इसको सब ग्रहण कीजिये और सरल उपाय है; | |||
:हरे कृष्णा हरे कृष्णा | |||
:कृष्णा कृष्णा हरे हरे | |||
:हरे रामा हरे रामा | |||
:रामा रामा हरे हरे | |||
थैंक यू वैरी मच। हरे कृष्णा |
Latest revision as of 08:33, 1 October 2025
A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada
Prabhupāda:
HINDI TRANSLATION
प्रभुपाद: (नो ऑडियो) भगवान का आस्वादन मिल सकता है। ये सब विचार है। इसलिए भगवान सीखा रहे हैं "रसो हम अप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशि सूर्यः"। यदि आप इसको अनुसंधान करें ये सूर्य का किरण किधर से आता है, तो आप रिसर्च कीजिये न, जीवन भर रिसर्च कीजिये। समझ लीजिये आप सूर्य तक पहुँच गया। देखो ये जो सूर्य किरण है किधर से निकाल रहा है। अब फिर जाके रेसेरच कीजिये की सूर्य कहाँ से आया है ऐसा अगर आप उसको रेसेरच करते रहिएगा, तो आगे जाके देखिएगा की कृष्णा सब का मूल है।
- अहम् सर्वस्य प्रभवो
मत्त सर्वं प्रवर्तते तो दो किस्म का ज्ञान है इंडक्टिव और डिडक्टिव। जैसा रिसर्च करके जाइये की सूर्य का किरण कहाँ से आता है और सूर्य कहाँ से आता है, वो सूर्य नारायण कहाँ से आता है; जाइये आगे बढिये, ब्रह्मा तक पहुंचिए, फिर ब्रह्मा कहाँ से आता है, फिर गर्भोदकशायी विष्णु के पास पहुँचिये, फिर उधर जाईये, वो कहाँ से आता है, तो ये कारणोदकशायी विष्णु से आता है, फिर कारणोदकशायी विष्णु कहाँ से आता है, ये संकर्षण से आता है, संकर्षण कहाँ से आता है, नारायण से आता है, नारायण कहाँ से आता है। इसी तरह से जाइये आगे और आगे जाके देखिएगा;
- ईश्वरः परमः कृष्णः
- सच्चिदानंदविग्रह:
- अनादिर आदिर गोविंद:
- सर्व-कारण-कारणम
तो आप चाहे खुद रिसर्च करके देख लीजिये नहीं तो परंपरा से गुरु का बात मान लीजिये। दोनों में आपका कारण हो सकता है। जो योग्य गुरु है परंपरा से आ रहे हैं वो जो कह दिया की देखो जी "कृष्णस तू भगवान स्वयं"। जैसा उदहारण समझ लीजिये की ये लोग को हम कह दिया भगवान एक ही है-कृष्णा, ये लोग मान लिया। भगवान का नाम लेते रहते हैं बस। अब खुद तो बड़ा सुखी है और आगे बढ़ रहा है। प्रमाण देखिये। तो दोनों तरफ से क्या लाभ होता है। एक तो आप दौड़ते रहिये जीवन भर "चिरम विचिन्वन" चिर काल चिंता करते रहिये 'भगवान क्या चीज़ है, भगवान क्या चीज़ है' ये एक रास्ता है ज्ञान लाभ करने के लिए और एक रास्ता है योग्य गुरु जो बोल दिया उसको आप मान लीजिये, काम ख़तम। जैसे भगवान कहते हैं; ये भगवान का बात हमलोग मान लें तो फिर भगवान को समझने में क्या देर लगता है, क्या रिसर्च का ज़रुरत है केवल समय नष्ट करना। भगवान कृष्ण जब बोलते हैं "मत्तः परतरं न अस्ति" मुझसे बढ़कर कोई पर तत्त्व है नहीं तो मान लेयो, काम ख़तम। फिर भगवान को जोड़ने के लिए वो थियोसोफिकल अस्सोसिएशन, थिस अस्सोसिएशन, थाट अस्सोसिएशन, न जाने क्या-क्या सब बनाया है भगवान का मॉडल। भगवान ऐसा मिलता है क्या? "चिरम विचिन्वन"
- अथापि ते देव पदाम्बुज-द्वय-
- प्रसाद-लेषानुगृहित एव हि
- जानाति तत्वं भगवान-महिम्नो
- न चान्या एको 'पि चिरम विचिन्वन
जिसको भगवान की थोड़ा ही कृपा मिली है वो ही कुछ भगवान को समझ सकता है। "नायं आत्मा प्रवचनेन लभ्यो" उपनिषद् में कह दिया है। ये जो आत्मा है, ये केवल प्रवचन करने से नहीं मिलता है। "न मेधया" औअर दिमाग बहुत अच्छा रहने से नहीं मिलता है, "न बहुना श्रुतेन" और वो बहुत वेद-वेदांत पाठ करने से नहीं मिलता ह। "यम एवैष वृणुते तेन लभ्यः" जिसको भगवान कृपा करते हैं, उसको मिलता है। भगवान खुद भी कहते हैं "भक्त्या मां अभिजाणाति यावां यस चास्मि तत्त्वतः" केवल भक्ति से हमको जान सकता है। नहीं तो और कोई उपाय नहीं है। इसलिए सब के लिए उचित है जो ये कृष्ण भक्ति, कृष्णा भावनामृत हम जो सब प्रचार कर रहे हैं, इसको सब ग्रहण कीजिये और सरल उपाय है;
- हरे कृष्णा हरे कृष्णा
- कृष्णा कृष्णा हरे हरे
- हरे रामा हरे रामा
- रामा रामा हरे हरे
थैंक यू वैरी मच। हरे कृष्णा
- 1972 - Lectures
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