730918 - Arrival Hindi - Bombay: Difference between revisions
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'''Devotees:''' Jaya Śrīla Prabhupāda. (end). | '''Devotees:''' Jaya Śrīla Prabhupāda. (end). | ||
HINDI TRANSLATION | |||
प्रभुपाद: | |||
सच्चिदानं। | |||
ये हरे कृष्णा आंदोलन भगवान श्री कृष्णा पांच हज़ार वर्ष पहले शुरू किया था। उसके ेपहले भी भगवान श्री कृष्णा शुरू किया था कोई चालीस करोड़ वर्ष पहले | |||
:इमं विवस्वते योगम् | |||
:प्रोक्तवान् अहम् अव्ययम् | |||
:विवस्वान् मनवे प्राहा | |||
:मनुर इक्ष्वाकवे 'ब्रवित् | |||
हिसाब-किताब करने से मनु का जो आयु है कोई चालीस करोड़ वर्ष पहले भगवान श्री कृष्णा ये जो कृष्णा भक्ति सूर्य भगवान को कहा था। विवस्वान । ये सूर्य जो आप सब लोग देखते हैं इधर भी राजा है, इधर भी प्रजा है और राजा का नाम है विवस्वान। ये नाम भी बतलाया गया है शास्त्र में। जितने ये सब गोलोक है, भूगोल है नक्षत्र तारा इत्यादि सब जगह में ऐसी राजा भी है, प्रजा भी है, शहर भी है, गाडी-घोडा सब कुछ है। ये सूर्य लोक में भी आजकल के जो ये वैज्ञानिक लोग है वो तो सपने में भी नहीं समझ सकते की ये जो सूर्य में कोई जा सकता है। अग्निमय है। परन्तु है। उधर जो जीवात्मा है, जो रहने वाला है वो लोग देवता विशेष है। उनका शरीर अग्निमय है। जैसे हमारा शरीर मट्टीमे है। ये हमारा शरीर ज़्यादा मट्टी इसमें है। इसी प्रकार पांच भौतिक जो द्रव्य है मट्टी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, ये ही शरीर जैसे आपको बनाया है, हमको बनाया है वैसे सभी का ये पांच चीज़ से बनाया हुआ है। किसी का शरीर में कोई चीज़ ज़्यादा है। जैसा आयुर्वेदिक हिसाब से किसी का पित्ता अधिक है, किसी का कफा अधिक है। इसी प्रकार शरीर भी अलग-अलग, भूगोल में, अलग-अलग लोक में अलग-अलग शरीर मिलता है। तो सूर्य लोक में भी शरीर है। ये बात नहीं है की वो खाली पड़ी है, नहीं। कोई जगह खाली नहीं है, सब जगह है। तो भगवान कृष्णचन्द्र पहले सूर्य भगवान को ही ये भगवद-गीता का विषय सुनाया था। और वो फिर नष्ट हो गया। इसको रखिये, बात-चीत के बाद। ये कोई इम्पोर्टेन्ट चीज़ नहीं है। सुनिए। तो भगवना खुद कह रहे हैं | |||
:इमं विवस्वते योगम् | |||
:प्रोक्तवान् अहम् अव्ययम् | |||
:विवस्वान् मनवे प्राहा | |||
:मनुर इक्ष्वाकवे 'ब्रवित् | |||
ये जो भगवद-गीता, भगवद-भक्ति ; भगवद-गीता मने भगवद-भक्ति। भगवद-गीता कोई पॉलिटिशियन का किताब नहीं है। ये भगवद-गीता दिखा करके अपना कोई राजनैतिक मतलब है उसको हासिल कर लिया जाये, नहीं। भगवद-गीता है भक्त के लिए। कई प्रकार के आदमी होते है। ज्ञानी होते हैं , कर्मी होते हैं, योगी होते हैं और भक्त भी होते हैं। ये जो भगवद-गीता है, इसमें ज्ञान योग, कर्म का सब बात बताया गया है परन्तु जो आखरी में भगवद-गीता का सिद्धांत है भगवद-भक्ति। | |||
:मन मना भव मद भक्तो | |||
:मद याजी माम नमस्कुरु | |||
ये भगवद-गीता का सिद्धांत है। जो सब समय हमारा चिंतन करो और "मन मना भव मद भक्तो", हमारा भक्त बन जाओ और "मन मना भव मद भक्तो मद याजी" हमको पूजा करो और "माम नमस्कुरु" हमको नमस्कार करो। चार चीज़ है। जैसे भगवान का मूर्ति इधर है। सब कोई अपने घर में भगवान का मूर्ति रख सकते हैं। कोई मुश्किल नहीं है और ये चार चीज़ साधन है। क्या चीज़ है? भगवान का मूर्ति देख करके ह्रदय में एक छाप होता है। कहीं भी जाइये भगवान का मूर्ति का दर्शन कीजिये। मन मना और मद भक्त। बिना भक्त हुए कौन भगवन को स्मरण करेगा? इसलिए भक्त होने पड़ेगा। | |||
भक्त का अर्थ होता है जो सब समय भगवान की सेवा में लीन रहे। तो भक्ति विनोद ठाकुर जैसे बताये हैं "कृष्णेर संसार करो छाड़ि अनाचार"। संसार, अपना बाल-बच्चे ले करके जीवन पालन करना है। करो, परन्तु भगवान कृष्ण को केंद्र करके। बीच में रक्खो भगवान को "कृष्णेर संसार करो छाड़ि अनाचार"। और अनाचार जो है इसको परित्याग करो। क्यूंकि शुद्ध होने पड़ेगा। भगवान परम पवित्र, शुद्ध। भगवान का पास पहुँचने के लिए जो भक्त है, जो भगवान के पाद जाने को चाहता हैं उनको भी शुद्ध होने पड़ेगा। अशुद्ध नहीं। भगवद-गीता में बताया हैं की "तेषां त्व अंत गतम पापं" जो ये पाप बिलकुल नष्ट हो गया और जो पापी नहीं हैं"तेषां त्व अंत गतम पापं"। "तेषां त्व अंत गतम पापं जनानां पुण्य कर्माणां" तो वो पाप से निरमुक्त कौन हो सकता हैं जो केवल पुण्य कार्य करते हैं। पाप कार्य करते ही नहीं। वो पाप से मुक्त हो सकता हैं। एक दफा पाप कर लिया थोड़ा पुण्य कर लिया तो ठीक-ठाक, हिसाब-किताब ठीक हो गया। नहीं, केवल पुण्य कार्य कीजिये, पाप न कीजिये। इसका नाम हैं "जनानां पुण्य कर्माणां ते द्वंद्व मोह निर्मुक्त भजन्ते माम दृढ़ व्रतः" इस प्रकार जो व्यक्ति हैं केवल पुण्य कार्य ही करते हैं, पाप का कोई नाम ही नहीं हैं। इस प्रकार जो व्यक्ति हैं वो "द्वंद्व मोह निर्मुक्त" ये भगवान आप कौन हैं, भगवान का कैसे रूप है, भगवान निराकार हैं की आकार हैं, ये सब द्वंद्व मोह जो हैं वो मुक्त हो जायेगा। वो जानते हैं की ये जो द्विभुज मुरलीधर कृष्णा "कृष्णस तू भगवान स्वयं" वो समझ जायेंगे। भगवान ऐसे बहुत से देवता को भी कभी-कभी कहा जाता है। जैसे भगवान शिवजी को भी कहा जाता है, ब्रह्माजी को भी कहा जाता है, नारद को भी कभी कहा जाता है। परन्तु भगवान जो मूल भगवान है "ईश्वरः परमः कृष्णः" "कृष्णस तू भगवान स्वयं" और सब भगवान का नौकर-चाकर है और जो स्वयं भगवान है वो स्वयं कृष्णा। ये शास्त्र सिद्धांत है। तो इसलिए भक्ति विनोद ठाकुर बता रहे हैं की "कृष्णेर संसार करो छाड़ि अनाचार"। हमलोग का संसार करने की प्रवृत्ति है। ये जो हमलोग सब भौतिक जगत में सब आये हैं कुछ भोग करने के लिए आते हैं। इसलिए पहले ब्रह्मा का ऐसे जन्म होता है। पहले तो ब्रह्मा ही का जन्म हुआ था। तो पहले तो वो जब दुनिया में आते हैं, भौतिक जगत में ब्रह्मा का ऐसे जन्म मिलता है, फिर अपना कर्म विपाक से ब्रह्मा से वो जो मैला का कीड़ा वो भी जन्म लेने को पड़ता है भोग करते-करते-करते-करते। इतना नीचे आ जाते हैं। इसलिए चैतन्य महाप्रभु बता रहे हैं "ऐ रुपे ब्रह्माण्ड ब्रमिते कौनो भाग्यवान जीव" इसी प्रकार ब्रमण कर रहे हैं। कभी ब्रह्मा हो रहे हैं, कभी इंद्र हो रहे हैं, कभी चंद्र हो रहे है, ये सब देवता होते-होते फिर नीचे गिर जाते हैं। इधर भी आकार के कभी कोई बड़ा नाम ज़्यादा व्यवसायी हो गया। बाकी कर्म का विपाक ऐसा है जो थोड़ा ही असावधान होने से फिर उसको नीचे गिरने पड़ता है। चौरासी लाख योनि है। "जलज नव-लक्षानि स्थावर लक्ष-विंशति"। वो फिर जाके जो गिर जाते हैं वो जन्म-मृत्यु के चक्र में, कभी कीड़ा होता है, कभी ब्राह्मण होता है, कभी होता है, कभी जानवर होता है, कभी देवता होता है, इसी प्रकार घूमता-फिरता रहता है ये ब्रह्माण्ड में। इसलिए चैतन्य महाप्रभु कहते हैं "ऐी रूपे ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोण भाग्यवान जीव" इस प्रकार ब्रह्मण करते-करते कोई अगर भाग्यवान जीव होये तो उसको एक मौका मिल जाता है। क्या मौका मिल जाता है? "गुरु-कृष्ण-प्रसाद पाय भक्ति-लता-बीज"। यदि भाग्यवान होये तो उसको योग्य गुरु मिल जाता है। और कृष्ण की कृपा से। जो वास्तविक ये संसार चक्र में ब्रह्मण करते-करते जो उखड जाता है और भगवान से प्रार्थना करता है 'भगवान अब हमको उद्धार कीजिय। उसके लिए भगवान योग्य गुरु भी दिखा देते हैं। इसलिए कहते हैं गुरु कृष्ण, कृष्ण की कृपा से; कृष्ण तो सबके ह्रदय में बैठे हुए हैं। "ईश्वर सर्व भूतानां ह्रद देषे अर्जुन तिष्ठति"। भगवान जो है सबके ह्रदय में बैठे हुए हैं, देखता है की ये क्या कर रहा है। भगवान चाहते हैं की ये मुर्ख जो है ये संसार भोगने को आया है चलो इसको देओ जो चाहता है इसको देओ, जब थक जायेगा तब हमारा पास आएंगे। तो इसलिए शास्त्र में कहते हैं, भगवद-गीता में "बहुनाम जन्मनाम अन्ते ज्ञानवान माम प्रपद्यते" अनेक जन्म ऐसा ब्रह्मण करते-करते-करते-करते जब वास्तविक ज्ञानवान होता है तब "वासुदेव सर्वं इति स महात्मा सुदुर्लभः"। वो भगवान का चरण में प्रपत्ति करता है। जो अनेक जन्म के पश्चात भगवान का चरण में प्रपत्ति करनी है, ये असल सिद्धांत है। तो भगवान खुद बताते हैं, जब भगवान इस लोक में प्रस्तुत थे तो क्या बताया | |||
:सर्व-धर्मान् परित्यज्य | |||
:माम एकं शरणं व्रज | |||
:अहं त्वां सर्व-पापेभ्यो | |||
:मोक्षयिष्यामि मा शुचः | |||
तो ये सब छोड़ो। यदि सुखी होने को चाहते हो तो ये सब भोग की वासना छोड़ करके हमारा चरण में प्रपत्ति करो और तुमको हम सब चीज़ देंगे। भोग का कुछ अभाव नहीं रहेगा। भगवान का भक्त जो होते हैं उसको कुछ अभाव नहीं। साधारण आपलोग सब कोई नौकर-चाकर रखते हैं, तो आपलोग देख़ते हैं की भाई ये हमारा पास काम कर रहा है, स्वे सेवा में निमित है, इसको कोई असुविधा न होये। तो इसी प्रकार यदि भौतिक जगत में इस प्रकार का व्यवहार है तो जो भगवान के सेवा में लगे हुए हैं, उसको कोई अभाव हो सकता है क्या? कभी नहीं। भगवान खुद कहते हैं "कौन्तेय प्रतिजानीहि न में भक्त प्रणश्यति", हमारा भक्त का कभी दुःख नहीं होगा। तो इसलिए भक्ति विनोद ठाकुर का गाना है जो ये जो हमलोग सब दुनिया का भोग का प्लान बनाया है, करो, बाकि कृष्ण का केंद्र करके करो। और अनाचार-व्यभिचार को छोड़ो। तभी जीवन में सुखी हो जाओगे। फिर कभी दुःख नहीं होगा। "कृष्णेर संसार करो छाड़ि अनाचार। तो अनाचार शास्त्र में जो कहते हैं की चार प्रकार का जो पाप है उसको छोड़ दीजिये। "स्त्रिय-सुना-पाना-द्युता यत्र पापस चतुर्-विधा"। एक तो अवैध स्त्री संघ करना, विवाहित स्त्री छोड़ करके कोई स्त्री से संपर्क रखना नहीं। ये शास्त्र कहते हैं। चाणक्य पंडित बताया है ये पंडित कौन होता है। तो वो तीन चीज़ बताया है। “मातृवत परदारेषु" जो दुसरे के स्त्री को अपना माँ के समान समझता है। ये हमारा वैदिक सिध्दांत है। इसलिए ब्रमचारी, कोई भी होये। और जो दुसरे औरत हो उसको माँ करके संपर्क करे, माताजी। ये नियम है। ये महापाप है जो अपना धर्मपत्नी छोड़कर और कोई स्त्री से संपर्क रखता है, महापाप है। इसको छोड़ना चाहिए यदि आपको भगवान को चाहिए और यदि नर्क में जाना चाहिए वो दूसरी बात है। जाइये, खूब जाइये। तो इसको छोड़नी चाहिए, अवैध स्त्री संघ और स्तरीय सुना पृथा, पशु मांस को खाना। मनुष्य के लिए पशु मांस खाना नहीं है। मनुष्य के लिए भागवत प्रसाद खाना चाहिए। भगवान कहते हैं "पत्रं पुष्पम फलम तोयं यो में भक्त्या प्रयछ्ती" तो इस प्रकार भगवान की प्रसाद खाना चाहिए और अवैध स्त्री संघ छोड़ना चाहिए और किसी प्रकार का नशा, भांग, चाय भी पीना छोड़ना चाहिए और कॉफ़ी और सिगरेट और बीड़ी ये भी सब छोड़ना चाहिए। चाय पानी तो छोड़ना ही चाहिए। स्त्रिय सूना पाना, पाना मने पान भी खाना छोड़ना चाहिए। ये शास्त्र में लिखा है। इस प्रकार शुद्ध हो जाइये और भगवान का नाम कीर्तन कीजिये। जो ये लड़की हस्ती है क्यों? ठीक नहीं लगती है? अच्छा, ठीक है। पिताजी को । ठीक है, वैरी इंटेलिजेंट गर्ल। यस। ये सब छोड़ दीजिये। ये सब छोड़ देने से क्या आदमी मर जाता है? नहीं, ये सब असत संघ से सीखते हैं और सात संघ कीजिये सब भूल जायेंगे। देखिये ये यूरोपियन, अमेरिकन लड़के-लड़कियां हमारे साथ बहुत हैं, हज़ारों हैं, दस हज़ार, सब छोड़ दिया। कभी आपलोग हमारा यूरोप, अमेरिका मंदिर में जाइएगा देखिएगा दो सौ पचास से कम नहीं, दो सौ, तीन सौ, चार सौ सब है, सब छोड़ दिया। बिलकुल शुद्ध हो गया। बिलकुल। इसी प्रकार हमलोग एहि प्रचार करते हैं की जो भगवान कृष्णा हैं और कृष्णा का संसार कीजिये और और भगवान का खूब सेवा कीजिये, भगवान के मूर्ति को सजाइये, खूब भोग लगाइये, भोग लगाने से भगवान तो भूका नहीं है सब खा जायेंगे, आपि लोग खाएंगे प्रसाद। इस प्रकार संसार कीजिये और ये सब पाप छोड़ दीजिये तो सुखी हो जायेंगे। ये ये हमारा कृष्णा कॉन्शियनेस का प्रचार है और कुछ नहीं है। ये सब के लिए है ऐसी बात नहीं है की ब्राह्मण के लिए है, कोई विद्वान के लिए है, की हिन्दू के लिए है, मुस्लमान के लिए है, सब के लिए है। चार प्रकार का पाप छोड़ दो और भगवान के सेवा करो। सेवा मने सब समय भगवान का चिंतन करो, भगवान का भक्ति करो। पैसा है तो खूब अच्छी तरह से भगवान का मंदिर बनाओ, खूब सेवा करो, खूब अच्छी तरह से भोग लगाओ, ये हमारा भारतीय संस्कृति है। ये सब छोड़-छाड़ के हमलोग जो सब बैठे हैं ये भारत की दुर्दशा है। तो फिर हमलोग सीखने को चेष्टा कर रहे हैं। आपलोग कृपा करके लीजियेगा। तो धन्यवाद। | |||
थैंक यू वैरी मच। हरे कृष्णा। | |||
डिवोटीस: जय श्रीला प्रभुपाद |
Latest revision as of 12:44, 4 September 2025
A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada
Prabhupāda:
(Hindi)
Thank you very much. Hare Kṛṣṇa.
Devotees: Jaya Śrīla Prabhupāda. (end).
HINDI TRANSLATION
प्रभुपाद: सच्चिदानं। ये हरे कृष्णा आंदोलन भगवान श्री कृष्णा पांच हज़ार वर्ष पहले शुरू किया था। उसके ेपहले भी भगवान श्री कृष्णा शुरू किया था कोई चालीस करोड़ वर्ष पहले
- इमं विवस्वते योगम्
- प्रोक्तवान् अहम् अव्ययम्
- विवस्वान् मनवे प्राहा
- मनुर इक्ष्वाकवे 'ब्रवित्
हिसाब-किताब करने से मनु का जो आयु है कोई चालीस करोड़ वर्ष पहले भगवान श्री कृष्णा ये जो कृष्णा भक्ति सूर्य भगवान को कहा था। विवस्वान । ये सूर्य जो आप सब लोग देखते हैं इधर भी राजा है, इधर भी प्रजा है और राजा का नाम है विवस्वान। ये नाम भी बतलाया गया है शास्त्र में। जितने ये सब गोलोक है, भूगोल है नक्षत्र तारा इत्यादि सब जगह में ऐसी राजा भी है, प्रजा भी है, शहर भी है, गाडी-घोडा सब कुछ है। ये सूर्य लोक में भी आजकल के जो ये वैज्ञानिक लोग है वो तो सपने में भी नहीं समझ सकते की ये जो सूर्य में कोई जा सकता है। अग्निमय है। परन्तु है। उधर जो जीवात्मा है, जो रहने वाला है वो लोग देवता विशेष है। उनका शरीर अग्निमय है। जैसे हमारा शरीर मट्टीमे है। ये हमारा शरीर ज़्यादा मट्टी इसमें है। इसी प्रकार पांच भौतिक जो द्रव्य है मट्टी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, ये ही शरीर जैसे आपको बनाया है, हमको बनाया है वैसे सभी का ये पांच चीज़ से बनाया हुआ है। किसी का शरीर में कोई चीज़ ज़्यादा है। जैसा आयुर्वेदिक हिसाब से किसी का पित्ता अधिक है, किसी का कफा अधिक है। इसी प्रकार शरीर भी अलग-अलग, भूगोल में, अलग-अलग लोक में अलग-अलग शरीर मिलता है। तो सूर्य लोक में भी शरीर है। ये बात नहीं है की वो खाली पड़ी है, नहीं। कोई जगह खाली नहीं है, सब जगह है। तो भगवान कृष्णचन्द्र पहले सूर्य भगवान को ही ये भगवद-गीता का विषय सुनाया था। और वो फिर नष्ट हो गया। इसको रखिये, बात-चीत के बाद। ये कोई इम्पोर्टेन्ट चीज़ नहीं है। सुनिए। तो भगवना खुद कह रहे हैं
- इमं विवस्वते योगम्
- प्रोक्तवान् अहम् अव्ययम्
- विवस्वान् मनवे प्राहा
- मनुर इक्ष्वाकवे 'ब्रवित्
ये जो भगवद-गीता, भगवद-भक्ति ; भगवद-गीता मने भगवद-भक्ति। भगवद-गीता कोई पॉलिटिशियन का किताब नहीं है। ये भगवद-गीता दिखा करके अपना कोई राजनैतिक मतलब है उसको हासिल कर लिया जाये, नहीं। भगवद-गीता है भक्त के लिए। कई प्रकार के आदमी होते है। ज्ञानी होते हैं , कर्मी होते हैं, योगी होते हैं और भक्त भी होते हैं। ये जो भगवद-गीता है, इसमें ज्ञान योग, कर्म का सब बात बताया गया है परन्तु जो आखरी में भगवद-गीता का सिद्धांत है भगवद-भक्ति।
- मन मना भव मद भक्तो
- मद याजी माम नमस्कुरु
ये भगवद-गीता का सिद्धांत है। जो सब समय हमारा चिंतन करो और "मन मना भव मद भक्तो", हमारा भक्त बन जाओ और "मन मना भव मद भक्तो मद याजी" हमको पूजा करो और "माम नमस्कुरु" हमको नमस्कार करो। चार चीज़ है। जैसे भगवान का मूर्ति इधर है। सब कोई अपने घर में भगवान का मूर्ति रख सकते हैं। कोई मुश्किल नहीं है और ये चार चीज़ साधन है। क्या चीज़ है? भगवान का मूर्ति देख करके ह्रदय में एक छाप होता है। कहीं भी जाइये भगवान का मूर्ति का दर्शन कीजिये। मन मना और मद भक्त। बिना भक्त हुए कौन भगवन को स्मरण करेगा? इसलिए भक्त होने पड़ेगा।
भक्त का अर्थ होता है जो सब समय भगवान की सेवा में लीन रहे। तो भक्ति विनोद ठाकुर जैसे बताये हैं "कृष्णेर संसार करो छाड़ि अनाचार"। संसार, अपना बाल-बच्चे ले करके जीवन पालन करना है। करो, परन्तु भगवान कृष्ण को केंद्र करके। बीच में रक्खो भगवान को "कृष्णेर संसार करो छाड़ि अनाचार"। और अनाचार जो है इसको परित्याग करो। क्यूंकि शुद्ध होने पड़ेगा। भगवान परम पवित्र, शुद्ध। भगवान का पास पहुँचने के लिए जो भक्त है, जो भगवान के पाद जाने को चाहता हैं उनको भी शुद्ध होने पड़ेगा। अशुद्ध नहीं। भगवद-गीता में बताया हैं की "तेषां त्व अंत गतम पापं" जो ये पाप बिलकुल नष्ट हो गया और जो पापी नहीं हैं"तेषां त्व अंत गतम पापं"। "तेषां त्व अंत गतम पापं जनानां पुण्य कर्माणां" तो वो पाप से निरमुक्त कौन हो सकता हैं जो केवल पुण्य कार्य करते हैं। पाप कार्य करते ही नहीं। वो पाप से मुक्त हो सकता हैं। एक दफा पाप कर लिया थोड़ा पुण्य कर लिया तो ठीक-ठाक, हिसाब-किताब ठीक हो गया। नहीं, केवल पुण्य कार्य कीजिये, पाप न कीजिये। इसका नाम हैं "जनानां पुण्य कर्माणां ते द्वंद्व मोह निर्मुक्त भजन्ते माम दृढ़ व्रतः" इस प्रकार जो व्यक्ति हैं केवल पुण्य कार्य ही करते हैं, पाप का कोई नाम ही नहीं हैं। इस प्रकार जो व्यक्ति हैं वो "द्वंद्व मोह निर्मुक्त" ये भगवान आप कौन हैं, भगवान का कैसे रूप है, भगवान निराकार हैं की आकार हैं, ये सब द्वंद्व मोह जो हैं वो मुक्त हो जायेगा। वो जानते हैं की ये जो द्विभुज मुरलीधर कृष्णा "कृष्णस तू भगवान स्वयं" वो समझ जायेंगे। भगवान ऐसे बहुत से देवता को भी कभी-कभी कहा जाता है। जैसे भगवान शिवजी को भी कहा जाता है, ब्रह्माजी को भी कहा जाता है, नारद को भी कभी कहा जाता है। परन्तु भगवान जो मूल भगवान है "ईश्वरः परमः कृष्णः" "कृष्णस तू भगवान स्वयं" और सब भगवान का नौकर-चाकर है और जो स्वयं भगवान है वो स्वयं कृष्णा। ये शास्त्र सिद्धांत है। तो इसलिए भक्ति विनोद ठाकुर बता रहे हैं की "कृष्णेर संसार करो छाड़ि अनाचार"। हमलोग का संसार करने की प्रवृत्ति है। ये जो हमलोग सब भौतिक जगत में सब आये हैं कुछ भोग करने के लिए आते हैं। इसलिए पहले ब्रह्मा का ऐसे जन्म होता है। पहले तो ब्रह्मा ही का जन्म हुआ था। तो पहले तो वो जब दुनिया में आते हैं, भौतिक जगत में ब्रह्मा का ऐसे जन्म मिलता है, फिर अपना कर्म विपाक से ब्रह्मा से वो जो मैला का कीड़ा वो भी जन्म लेने को पड़ता है भोग करते-करते-करते-करते। इतना नीचे आ जाते हैं। इसलिए चैतन्य महाप्रभु बता रहे हैं "ऐ रुपे ब्रह्माण्ड ब्रमिते कौनो भाग्यवान जीव" इसी प्रकार ब्रमण कर रहे हैं। कभी ब्रह्मा हो रहे हैं, कभी इंद्र हो रहे हैं, कभी चंद्र हो रहे है, ये सब देवता होते-होते फिर नीचे गिर जाते हैं। इधर भी आकार के कभी कोई बड़ा नाम ज़्यादा व्यवसायी हो गया। बाकी कर्म का विपाक ऐसा है जो थोड़ा ही असावधान होने से फिर उसको नीचे गिरने पड़ता है। चौरासी लाख योनि है। "जलज नव-लक्षानि स्थावर लक्ष-विंशति"। वो फिर जाके जो गिर जाते हैं वो जन्म-मृत्यु के चक्र में, कभी कीड़ा होता है, कभी ब्राह्मण होता है, कभी होता है, कभी जानवर होता है, कभी देवता होता है, इसी प्रकार घूमता-फिरता रहता है ये ब्रह्माण्ड में। इसलिए चैतन्य महाप्रभु कहते हैं "ऐी रूपे ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोण भाग्यवान जीव" इस प्रकार ब्रह्मण करते-करते कोई अगर भाग्यवान जीव होये तो उसको एक मौका मिल जाता है। क्या मौका मिल जाता है? "गुरु-कृष्ण-प्रसाद पाय भक्ति-लता-बीज"। यदि भाग्यवान होये तो उसको योग्य गुरु मिल जाता है। और कृष्ण की कृपा से। जो वास्तविक ये संसार चक्र में ब्रह्मण करते-करते जो उखड जाता है और भगवान से प्रार्थना करता है 'भगवान अब हमको उद्धार कीजिय। उसके लिए भगवान योग्य गुरु भी दिखा देते हैं। इसलिए कहते हैं गुरु कृष्ण, कृष्ण की कृपा से; कृष्ण तो सबके ह्रदय में बैठे हुए हैं। "ईश्वर सर्व भूतानां ह्रद देषे अर्जुन तिष्ठति"। भगवान जो है सबके ह्रदय में बैठे हुए हैं, देखता है की ये क्या कर रहा है। भगवान चाहते हैं की ये मुर्ख जो है ये संसार भोगने को आया है चलो इसको देओ जो चाहता है इसको देओ, जब थक जायेगा तब हमारा पास आएंगे। तो इसलिए शास्त्र में कहते हैं, भगवद-गीता में "बहुनाम जन्मनाम अन्ते ज्ञानवान माम प्रपद्यते" अनेक जन्म ऐसा ब्रह्मण करते-करते-करते-करते जब वास्तविक ज्ञानवान होता है तब "वासुदेव सर्वं इति स महात्मा सुदुर्लभः"। वो भगवान का चरण में प्रपत्ति करता है। जो अनेक जन्म के पश्चात भगवान का चरण में प्रपत्ति करनी है, ये असल सिद्धांत है। तो भगवान खुद बताते हैं, जब भगवान इस लोक में प्रस्तुत थे तो क्या बताया
- सर्व-धर्मान् परित्यज्य
- माम एकं शरणं व्रज
- अहं त्वां सर्व-पापेभ्यो
- मोक्षयिष्यामि मा शुचः
तो ये सब छोड़ो। यदि सुखी होने को चाहते हो तो ये सब भोग की वासना छोड़ करके हमारा चरण में प्रपत्ति करो और तुमको हम सब चीज़ देंगे। भोग का कुछ अभाव नहीं रहेगा। भगवान का भक्त जो होते हैं उसको कुछ अभाव नहीं। साधारण आपलोग सब कोई नौकर-चाकर रखते हैं, तो आपलोग देख़ते हैं की भाई ये हमारा पास काम कर रहा है, स्वे सेवा में निमित है, इसको कोई असुविधा न होये। तो इसी प्रकार यदि भौतिक जगत में इस प्रकार का व्यवहार है तो जो भगवान के सेवा में लगे हुए हैं, उसको कोई अभाव हो सकता है क्या? कभी नहीं। भगवान खुद कहते हैं "कौन्तेय प्रतिजानीहि न में भक्त प्रणश्यति", हमारा भक्त का कभी दुःख नहीं होगा। तो इसलिए भक्ति विनोद ठाकुर का गाना है जो ये जो हमलोग सब दुनिया का भोग का प्लान बनाया है, करो, बाकि कृष्ण का केंद्र करके करो। और अनाचार-व्यभिचार को छोड़ो। तभी जीवन में सुखी हो जाओगे। फिर कभी दुःख नहीं होगा। "कृष्णेर संसार करो छाड़ि अनाचार। तो अनाचार शास्त्र में जो कहते हैं की चार प्रकार का जो पाप है उसको छोड़ दीजिये। "स्त्रिय-सुना-पाना-द्युता यत्र पापस चतुर्-विधा"। एक तो अवैध स्त्री संघ करना, विवाहित स्त्री छोड़ करके कोई स्त्री से संपर्क रखना नहीं। ये शास्त्र कहते हैं। चाणक्य पंडित बताया है ये पंडित कौन होता है। तो वो तीन चीज़ बताया है। “मातृवत परदारेषु" जो दुसरे के स्त्री को अपना माँ के समान समझता है। ये हमारा वैदिक सिध्दांत है। इसलिए ब्रमचारी, कोई भी होये। और जो दुसरे औरत हो उसको माँ करके संपर्क करे, माताजी। ये नियम है। ये महापाप है जो अपना धर्मपत्नी छोड़कर और कोई स्त्री से संपर्क रखता है, महापाप है। इसको छोड़ना चाहिए यदि आपको भगवान को चाहिए और यदि नर्क में जाना चाहिए वो दूसरी बात है। जाइये, खूब जाइये। तो इसको छोड़नी चाहिए, अवैध स्त्री संघ और स्तरीय सुना पृथा, पशु मांस को खाना। मनुष्य के लिए पशु मांस खाना नहीं है। मनुष्य के लिए भागवत प्रसाद खाना चाहिए। भगवान कहते हैं "पत्रं पुष्पम फलम तोयं यो में भक्त्या प्रयछ्ती" तो इस प्रकार भगवान की प्रसाद खाना चाहिए और अवैध स्त्री संघ छोड़ना चाहिए और किसी प्रकार का नशा, भांग, चाय भी पीना छोड़ना चाहिए और कॉफ़ी और सिगरेट और बीड़ी ये भी सब छोड़ना चाहिए। चाय पानी तो छोड़ना ही चाहिए। स्त्रिय सूना पाना, पाना मने पान भी खाना छोड़ना चाहिए। ये शास्त्र में लिखा है। इस प्रकार शुद्ध हो जाइये और भगवान का नाम कीर्तन कीजिये। जो ये लड़की हस्ती है क्यों? ठीक नहीं लगती है? अच्छा, ठीक है। पिताजी को । ठीक है, वैरी इंटेलिजेंट गर्ल। यस। ये सब छोड़ दीजिये। ये सब छोड़ देने से क्या आदमी मर जाता है? नहीं, ये सब असत संघ से सीखते हैं और सात संघ कीजिये सब भूल जायेंगे। देखिये ये यूरोपियन, अमेरिकन लड़के-लड़कियां हमारे साथ बहुत हैं, हज़ारों हैं, दस हज़ार, सब छोड़ दिया। कभी आपलोग हमारा यूरोप, अमेरिका मंदिर में जाइएगा देखिएगा दो सौ पचास से कम नहीं, दो सौ, तीन सौ, चार सौ सब है, सब छोड़ दिया। बिलकुल शुद्ध हो गया। बिलकुल। इसी प्रकार हमलोग एहि प्रचार करते हैं की जो भगवान कृष्णा हैं और कृष्णा का संसार कीजिये और और भगवान का खूब सेवा कीजिये, भगवान के मूर्ति को सजाइये, खूब भोग लगाइये, भोग लगाने से भगवान तो भूका नहीं है सब खा जायेंगे, आपि लोग खाएंगे प्रसाद। इस प्रकार संसार कीजिये और ये सब पाप छोड़ दीजिये तो सुखी हो जायेंगे। ये ये हमारा कृष्णा कॉन्शियनेस का प्रचार है और कुछ नहीं है। ये सब के लिए है ऐसी बात नहीं है की ब्राह्मण के लिए है, कोई विद्वान के लिए है, की हिन्दू के लिए है, मुस्लमान के लिए है, सब के लिए है। चार प्रकार का पाप छोड़ दो और भगवान के सेवा करो। सेवा मने सब समय भगवान का चिंतन करो, भगवान का भक्ति करो। पैसा है तो खूब अच्छी तरह से भगवान का मंदिर बनाओ, खूब सेवा करो, खूब अच्छी तरह से भोग लगाओ, ये हमारा भारतीय संस्कृति है। ये सब छोड़-छाड़ के हमलोग जो सब बैठे हैं ये भारत की दुर्दशा है। तो फिर हमलोग सीखने को चेष्टा कर रहे हैं। आपलोग कृपा करके लीजियेगा। तो धन्यवाद। थैंक यू वैरी मच। हरे कृष्णा। डिवोटीस: जय श्रीला प्रभुपाद
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