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701230 - Lecture Hindi - Surat: Difference between revisions

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===HINDI TRANSCRIPTION===


'''Prabhupāda:''' Hare Kṛṣṇa (Hindi)
''प्रभुपाद:'' हरे कृष्ण, सज्जनों, मातृवृंद, पाश्चात्य देश में हरी संकीर्तन आंदोलन है, उसका विषय आपको संक्षेप में कुछ मैं बोलना चाहता हूँ।
 
सन १९६५ में, हमारे गुरु महाराज की आज्ञा अनुसार, मैं अमेरिका गया था। १७ सितंबर १९६५ को वेस्टर्न फोर्ट जहाज़ से मैं अमेरिका पहुँचा। उस समय मेरे पास मात्र ४० रुपये थे। मुझे यह भी नहीं मालूम था कि अमेरिका जैसे शहर में कैसे रहना है, कहाँ जाना है।
 
एक मित्र, गोपाल अग्रवाल, बैटलर में रहते थे। उन्होंने निमंत्रण दिया था। न्यूयॉर्क से लगभग १००० मील दूर था उनका घर। मैं वहाँ १०–१५ दिन रुका और फिर न्यूयॉर्क आया। न्यूयॉर्क में मैं एक वर्ष तक कभी इधर, कभी उधर, घूमते फिरते रहा। एक कमरा किराए पर लिया, जिसका ७०० रुपया किराया था। वहाँ भी मेरा कुछ सामान चोरी हो गया।
 
इस प्रकार कठिनाई सहते हुए, १९६६ में इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (ISKCON) — यानी कृष्ण भक्ति रसाभानामृत संघ को न्यूयॉर्क के धर्म-कानून के अनुसार रजिस्टर किया।
न्यूयॉर्क में टॉमपकिंसन स्क्वायर नामक एक बग़ीचा है। वहाँ रविवार को बैठकर मैंने संकीर्तन प्रारंभ किया:
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे<br>
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
 
 
धीरे-धीरे नवयुवक लोग मेरे चारों ओर एकत्र हुए। कुछ ही दिनों में लगभग १०–१२ नवयुवक मेरे शिष्य बन गए। मैंने उन्हें अच्छी तरह सिखाया और पहली शाखा सैन फ्रांसिस्को में खोली। उसके बाद मॉन्ट्रियल, फिर बॉस्टन, बफ़ेलो — इस तरह १९६७ तक कई केंद्र खुले।
 
१९६७ में मेरी तबियत ख़राब हो गई, इसलिए भारत लौट आया। छह महीने भारत में रहने के बाद, १९६८ में पुनः सैन फ्रांसिस्को लौटकर आंदोलन फिर से प्रारंभ किया।
 
१९६८ से १९७० तक पूरे विश्व में — केवल अमेरिका नहीं, बल्कि इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, जापान आदि में कुल ४२ केंद्र स्थापित हो गए। आज की तारीख़ में हमारे ४५ केंद्र हैं — अर्थात ४५ महीनों में ४५ केंद्र खुले, यानी हर माह एक केंद्र।
 
इससे यह सिद्ध होता है कि पाश्चात्य देशों में लोगों ने भौतिक सभ्यता का चरम अनुभव कर लिया है — धन, भोग और स्त्रियों का आनंद उठा चुके हैं। अब वे ईश्वर को पाना चाहते हैं। जैसा वेदांत सूत्र कहता है:
अथातो ब्रह्म-जिज्ञासा जीव कभी भी भौतिक सुख से पूर्ण तृप्त नहीं हो सकता। उसे ब्रह्मानंद चाहिए। इसलिए भौतिक भोगों के पश्चात वह ईश्वर को जानने की जिज्ञासा करता है। अब प्रश्न है — वह ब्रह्म क्या है?
 
 
अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते।<br>
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः॥ (भगवद्गीता १०.८)
 
 
"मैं ही सबका कारण हूँ, मुझसे ही सब कुछ उत्पन्न होता है। इसे जानकर बुद्धिमान भक्त भावपूर्वक मेरी भक्ति करते हैं।" जो भगवान श्रीकृष्ण को मूल कारण समझते हैं:
 
 
ईश्वरः परमः कृष्णः सच्चिदानन्दविग्रहः।<br>
अनादिरादिर् गोविन्दः सर्वकारणकारणम्॥
 
 
ऐसे बुद्धिमान व्यक्ति श्रीकृष्ण के चरणों में आत्म-समर्पण करते हैं।
 
 
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥
 
 
अनेक जन्मों के बाद, ज्ञानी व्यक्ति भगवान को ही सब कुछ समझकर उनकी शरण में आता है। लेकिन चैतन्य महाप्रभु की कृपा से यह ज्ञान अनेक जन्मों के बाद नहीं, एक ही जीवन में प्राप्त हो सकता है — यदि उनके बताए मार्ग का पालन करें। श्रीकृष्ण चैतन्य, प्रभु नित्यानंद — स्वयं भगवान ही भक्त रूप में अवतरित हुए और भक्ति किस प्रकार करनी चाहिए, यह उन्होंने सिखाया। चैतन्य महाप्रभु का जो मार्ग है, वह है:
 
 
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम्।<br>
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा॥
 
 
अर्थात कलियुग में केवल हरे नाम — यही मुक्ति का एकमात्र साधन है। चैतन्य महाप्रभु ने आज से ५०० वर्ष पहले बंगाल के नवद्वीप में अवतरित होकर यह हरे कृष्ण महामंत्र सारे भारत में प्रचारित किया। दक्षिण भारत में तुकाराम जी उनके शिष्य थे। उन्होंने भी नाम-संकीर्तन का प्रचार किया। आज हर प्रदेश में हरे कृष्ण मंत्र का प्रचार है। यही कलियुग का सच्चा साधन है। चाहे गृहस्थ हो, ब्राह्मण हो, शूद्र हो — कोई भी, कहीं भी, अपने घर पर, मंदिर में या एकत्र होकर इस मंत्र का जाप कर सकता है:
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे<br>
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
 
 
फिर दोहराइए:
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे<br>
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
 
 
अब मैं एक और बात कहना चाहता हूँ। चैतन्य महाप्रभु ने भविष्यवाणी की थी:
 
 
पृथिवीते आछे यतः नगरादि ग्रामः<br>
सर्वत्र प्रचारः हैबे मोर नामः॥
 
 
"जगत में जितने भी नगर और गाँव हैं, हर जगह मेरे नाम का प्रचार होगा।" उन्होंने और कहा:
 
 
भारतभूमिते हैल मनुष्य जन्म यार<br>
जन्म सार्थक करि’ कर पर-उपकार॥
 
 
"जिसने भारत भूमि में जन्म लिया है, वह अपना जीवन सफल करके परोपकार करे।" इस हरे कृष्ण मंत्र का प्रचार करिए। मैंने जितना बन पड़ा, किया है। अब मेरे अमेरिकी और यूरोपीय शिष्य इसे पूरे विश्व में फैला रहे हैं। यदि आप नवयुवक इस आंदोलन में योगदान दें, तो चैतन्य महाप्रभु की इच्छा के अनुसार हर गाँव, हर शहर में यह संकीर्तन आंदोलन फैल सकता है। इसलिए मैं आप सब उत्साही युवकों से निवेदन करता हूँ — आइए, इस आंदोलन में सहयोग दीजिए। हम सब मिलकर इस हरे कृष्ण महामंत्र के द्वारा संपूर्ण विश्व में शांति और आनंद ला सकते हैं।
 
 
हरे कृष्ण।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

Revision as of 06:06, 7 June 2025

His Divine Grace
A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada



701230LE-SURAT - December 30, 1970 - 11:41 Minutes


HINDI TRANSCRIPTION

प्रभुपाद: हरे कृष्ण, सज्जनों, मातृवृंद, पाश्चात्य देश में हरी संकीर्तन आंदोलन है, उसका विषय आपको संक्षेप में कुछ मैं बोलना चाहता हूँ।

सन १९६५ में, हमारे गुरु महाराज की आज्ञा अनुसार, मैं अमेरिका गया था। १७ सितंबर १९६५ को वेस्टर्न फोर्ट जहाज़ से मैं अमेरिका पहुँचा। उस समय मेरे पास मात्र ४० रुपये थे। मुझे यह भी नहीं मालूम था कि अमेरिका जैसे शहर में कैसे रहना है, कहाँ जाना है।

एक मित्र, गोपाल अग्रवाल, बैटलर में रहते थे। उन्होंने निमंत्रण दिया था। न्यूयॉर्क से लगभग १००० मील दूर था उनका घर। मैं वहाँ १०–१५ दिन रुका और फिर न्यूयॉर्क आया। न्यूयॉर्क में मैं एक वर्ष तक कभी इधर, कभी उधर, घूमते फिरते रहा। एक कमरा किराए पर लिया, जिसका ७०० रुपया किराया था। वहाँ भी मेरा कुछ सामान चोरी हो गया।

इस प्रकार कठिनाई सहते हुए, १९६६ में इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (ISKCON) — यानी कृष्ण भक्ति रसाभानामृत संघ को न्यूयॉर्क के धर्म-कानून के अनुसार रजिस्टर किया। न्यूयॉर्क में टॉमपकिंसन स्क्वायर नामक एक बग़ीचा है। वहाँ रविवार को बैठकर मैंने संकीर्तन प्रारंभ किया:


हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे


धीरे-धीरे नवयुवक लोग मेरे चारों ओर एकत्र हुए। कुछ ही दिनों में लगभग १०–१२ नवयुवक मेरे शिष्य बन गए। मैंने उन्हें अच्छी तरह सिखाया और पहली शाखा सैन फ्रांसिस्को में खोली। उसके बाद मॉन्ट्रियल, फिर बॉस्टन, बफ़ेलो — इस तरह १९६७ तक कई केंद्र खुले।

१९६७ में मेरी तबियत ख़राब हो गई, इसलिए भारत लौट आया। छह महीने भारत में रहने के बाद, १९६८ में पुनः सैन फ्रांसिस्को लौटकर आंदोलन फिर से प्रारंभ किया।

१९६८ से १९७० तक पूरे विश्व में — केवल अमेरिका नहीं, बल्कि इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, जापान आदि में कुल ४२ केंद्र स्थापित हो गए। आज की तारीख़ में हमारे ४५ केंद्र हैं — अर्थात ४५ महीनों में ४५ केंद्र खुले, यानी हर माह एक केंद्र।

इससे यह सिद्ध होता है कि पाश्चात्य देशों में लोगों ने भौतिक सभ्यता का चरम अनुभव कर लिया है — धन, भोग और स्त्रियों का आनंद उठा चुके हैं। अब वे ईश्वर को पाना चाहते हैं। जैसा वेदांत सूत्र कहता है: अथातो ब्रह्म-जिज्ञासा जीव कभी भी भौतिक सुख से पूर्ण तृप्त नहीं हो सकता। उसे ब्रह्मानंद चाहिए। इसलिए भौतिक भोगों के पश्चात वह ईश्वर को जानने की जिज्ञासा करता है। अब प्रश्न है — वह ब्रह्म क्या है?


अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः॥ (भगवद्गीता १०.८)


"मैं ही सबका कारण हूँ, मुझसे ही सब कुछ उत्पन्न होता है। इसे जानकर बुद्धिमान भक्त भावपूर्वक मेरी भक्ति करते हैं।" जो भगवान श्रीकृष्ण को मूल कारण समझते हैं:


ईश्वरः परमः कृष्णः सच्चिदानन्दविग्रहः।
अनादिरादिर् गोविन्दः सर्वकारणकारणम्॥


ऐसे बुद्धिमान व्यक्ति श्रीकृष्ण के चरणों में आत्म-समर्पण करते हैं।


बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान मां प्रपद्यते। वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥


अनेक जन्मों के बाद, ज्ञानी व्यक्ति भगवान को ही सब कुछ समझकर उनकी शरण में आता है। लेकिन चैतन्य महाप्रभु की कृपा से यह ज्ञान अनेक जन्मों के बाद नहीं, एक ही जीवन में प्राप्त हो सकता है — यदि उनके बताए मार्ग का पालन करें। श्रीकृष्ण चैतन्य, प्रभु नित्यानंद — स्वयं भगवान ही भक्त रूप में अवतरित हुए और भक्ति किस प्रकार करनी चाहिए, यह उन्होंने सिखाया। चैतन्य महाप्रभु का जो मार्ग है, वह है:


हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम्।
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा॥


अर्थात कलियुग में केवल हरे नाम — यही मुक्ति का एकमात्र साधन है। चैतन्य महाप्रभु ने आज से ५०० वर्ष पहले बंगाल के नवद्वीप में अवतरित होकर यह हरे कृष्ण महामंत्र सारे भारत में प्रचारित किया। दक्षिण भारत में तुकाराम जी उनके शिष्य थे। उन्होंने भी नाम-संकीर्तन का प्रचार किया। आज हर प्रदेश में हरे कृष्ण मंत्र का प्रचार है। यही कलियुग का सच्चा साधन है। चाहे गृहस्थ हो, ब्राह्मण हो, शूद्र हो — कोई भी, कहीं भी, अपने घर पर, मंदिर में या एकत्र होकर इस मंत्र का जाप कर सकता है:


हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे


फिर दोहराइए:


हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे


अब मैं एक और बात कहना चाहता हूँ। चैतन्य महाप्रभु ने भविष्यवाणी की थी:


पृथिवीते आछे यतः नगरादि ग्रामः
सर्वत्र प्रचारः हैबे मोर नामः॥


"जगत में जितने भी नगर और गाँव हैं, हर जगह मेरे नाम का प्रचार होगा।" उन्होंने और कहा:


भारतभूमिते हैल मनुष्य जन्म यार
जन्म सार्थक करि’ कर पर-उपकार॥


"जिसने भारत भूमि में जन्म लिया है, वह अपना जीवन सफल करके परोपकार करे।" इस हरे कृष्ण मंत्र का प्रचार करिए। मैंने जितना बन पड़ा, किया है। अब मेरे अमेरिकी और यूरोपीय शिष्य इसे पूरे विश्व में फैला रहे हैं। यदि आप नवयुवक इस आंदोलन में योगदान दें, तो चैतन्य महाप्रभु की इच्छा के अनुसार हर गाँव, हर शहर में यह संकीर्तन आंदोलन फैल सकता है। इसलिए मैं आप सब उत्साही युवकों से निवेदन करता हूँ — आइए, इस आंदोलन में सहयोग दीजिए। हम सब मिलकर इस हरे कृष्ण महामंत्र के द्वारा संपूर्ण विश्व में शांति और आनंद ला सकते हैं।


हरे कृष्ण। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।